संसार के सब लोग दुखों और मुसीबतों के सागर में गोते खा रहे हैं। कोई बेरोजगारी और निर्धनता के कारण दुखी है, किसी को रोग के कारण कष्ट है और किसी के घर में मृत्यु हो जाने से शोक छाया हुआ है।
गुरु नानक साहिब कहते हैं
नानक दुखिआ सब संसार।
सो सुखिया जिस नाम आधार।।
मुसलमान संतों ने भी संसार को दुखों का घर कहा है। संसार के दो भाग हैं- जल और थल। जल में छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाती है और बड़ी मछली को और बड़ी मछली निंगल जाती है। थल पर भी बड़े पक्षी छोटे पक्षियों को और बड़े पक्षी छोटे पक्षियों को और छोटे पक्षी कीड़े मकोड़ों को खा जाते हैं। सिंह और चीते निर्बल जीवों, भेड़-बकरियों आदि को खा जाते हैं। मनुष्य सभी जीवो को अपना भोजन बना लेता है। उससे कुछ भी सुरक्षित नहीं है।
जीवन सभी को प्यारा है
परंतु जीवन सभी को प्यारा है। उन मूक पशुओं की पीड़ा को देखने पर कंपकंपी होती है, जिनको मनुष्य के भोजन के लिए प्रति दिन काटा जाता है। तथा जिनको हम शिकार के लिए गोलियों का निशाना बना देते हैं। मनुष्य शरीर हमें प्रभु प्राप्ति के उद्देश्य के लिए मिला था, परंतु हम इसे प्रभु की जीवों के प्रति क्रूरता में गवा देते हैं। जब मनुष्य इस सीमा तक गिर जाता है तो पशुओं से भी गया गुजरा हो जाता है।
पशु तो भूख मिटाने के लिए अन्य जीवों का शिकार करते हैं, परंतु मनुष्य जीभ के स्वाद अथवा शिकार का शौक पूरा करने के लिए जीवों का घात करता है। इसके अपने शरीर को जरा भी खरोच आ जाए तो पीड़ा से व्याकुल हो जाता है। और शीघ्र ही उससे मुक्त होना चाहता है। कितने आश्चर्य की बात है कि हमारे रहने के लिए बनाई गई इस पृथ्वी पर न तो शांति है ना सुरक्षा। कोई नहीं जानता की कब मृत्यु आ घेरेगी या कब को चीजों की आएगी।
आओ, अमल करें।
इसीलिए संत महात्मा कहते हैं कि हम जिस काम के लिए इस धरती पर आए हैं। हमें वह काम पूरा करना है। वह कौन सा काम है? वह काम है प्रभु प्राप्ति का। उसके लिए हमें किसी पूर्ण संत-सतगुरु की शरण में जाना है और उनसे ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित कर आनी है। वहां से हमें नामदान की युक्ति प्राप्त होगी, उसे हमें हर रोज बिना नागा सुमिरन करना है और प्रभु को प्राप्त करना है।