संत -महात्मा अपने हर एक सत्संग में नाम और उसकी भक्ति के बारे में फ़रमाते हैं। संत बताते हैं कि जिस भी व्यक्ति को नामदान की दात मिल गयी वो व्यक्ति संसार का सबसे धनी व्यक्ति बन जाता है, परन्तु उसकी महिमा को जानना बहुत जरूरी है। उसको यह जानना बहुत जरूरी है कि वह अनमोल नाम का हमारे जीवन में क्या महत्व है। उसको पाने से हम क्या कर सकते है।
हमारे घर यानी शरीर के अंदर परमात्मा ने नाम रूपी अपार दौलत रखी है, लेकिन हमारा मन बहिर्मुखी होकर भर्मों में उलझा हुआ है। जब तक हम अपने शरीर के अंदर खोज नहीं करते, उस दौलत को प्राप्त नहीं कर सकते। कहीं-कहीं आबादियों के नीचे पुराने कुएं दबे होते हैं। हम उन जमीनों पर चलते-फिरते हैं, लेकिन हमें मालूम नहीं होता कि इस जगह मिट्टी के नीचे कुंआ दबा हुआ है।
ओड लोग विद्या और हुनर के द्वारा हमें वह जगह बता देते हैं। जहां मिट्टी की खुदाई करने से बना बनाया कुआं मिल सकता है। ओड लोग कुआं बना कर उसे मिट्टी से नहीं दबा देते। उनको सिर्फ यह ज्ञान और इल्म होता है जिसका फायदा उठाकर हम उस कुँए का उपयोग कर सकते हैं।
बाबाजी की वाणी :-
परमात्मा की खोज अपने अंदर करो, बाहर नही। बाबाजी का कथन
परमात्मा की खोज अपने अंदर करो, बाहर नही। बाबाजी का कथन
इसी तरह महात्मा भी हमारे अंदर कुछ नहीं डालते, उनको इल्म और ज्ञान होता है कि हमारे अंदर वह परमात्मा है और उससे मिलने का रास्ता भी हमारे अंदर ही है। संत हमें अंदर उस रास्ते पर लगा देते हैं। इसलिए हमें संत महात्माओं की तलाश करनी पड़ती है। उनकी संगति और सोहबत में रहना पड़ता है। हमारा मन हमेशा संगति का असर लेता है।
बाबाजी की वाणी :- संतों के वचन आपको परमात्मा से मिला सकते हैं
हमें संतों की संगति करके ही पता चलता है की नामरूपी दात की क्या कीमत है। उसकी महिमा क्या है। और उसको पाने से व्यक्ति कितना धनी बन जाता है। उस शब्द की महिमा करके हम इस मनुष्य जन्म का लाभ उठा सकते हैं।
|| राधास्वामी ||
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