हमारी रूहानी उन्नति का असल अनुमान इस बात लगता है कि हमारा सतगुरु के साथ कैसे संबंध है। हममें से बहुत से लोग प्रेम को शरीर के स्तर पर नीचे खींच लाये हैं और इसके परिणाम स्वरूप हमने यह सोचना शुरू कर दिया है कि दिव्य-प्रेम के अनुभव के लिए हमारा सतगुरु के साथ देह-स्वरूप के पास रहना बहुत जरूरी है।
महाराज चरन सिंह
शिष्य को संतमत समझाकर, उसे इस मार्ग पर लगाकर और उसके अंदर शब्द या नाम के प्रति प्रेम पैदा करके देह-स्वरूप का गुरु का कार्य पूरा हो जाता है। इसके बाद देह-स्वरूप के प्रेम को शब्द या नाम के प्रेम में बदलना जरूरी है, क्योंकि हमें दुनिया और शरीर से खींचकर परमात्मा के साथ मिलने का काम शब्द या नाम ही करता है।
विचार करने योग्य : - बाबाजी ने जब संसार के बारे में बताया तो..
सभी संत-महात्मा एक ही सत्य पर जोर देते हैं। असल सतगुरु शब्द है। आन्तरिक दर्शन ही सच्चे दर्शन है। सत्य अंदर है। संतमत शिष्य को परम सत्य की मंजिल तक पहुंचा सकता है, पर उस मंजिल तक पहुंचने के लिए शिष्य को आन्तरिक सफ़र स्वयं करना पड़ता है। सतगुरु सत्य की ओर इशारा करते हैं। सत्य की प्राप्ति का मार्ग बता सकते हैं, पर उनका सत्य का अनुभव हमारी कमी पूरी नहीं कर सकता। उस मंजिल तक पहुंचने का हमारा अपना कर्तव्य बनता है।
विचार करने योग्य : - ये सबसे अच्छा आसन है, भजन सुमिरन के लिए। पढें
अगर सतगुरु की नजदीकी चाहते हैं तो भजन सुमिरन करना जरूरी है। यह सोचना कि हम बार-बार डेरे जाकर या जहां-कहीं सतगुरु जायें, उनके पीछे-पीछे जाकर उनकी नजदीकी प्राप्त कर सकते हैं, अपने आपको धोखा देना है। क्योंकि सतगुरु के साथ वास्तविक रिश्ता आंतरिक ऊंचे मंडलों में ही स्थापित होता है। भजन-सिमरन की बिना रिश्ते में गहराई और परिपक्वता नहीं आती। इसलिए हमें चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा समय भजन सिमरन को दें और रूहानी सफर को तय करें।
|| राधास्वामी ||
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