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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2019

सुमिरन करते समय सतगुरु का ध्यान लाभदायक : बाबाजी

सुमिरन मन द्वारा करना चाहिए और किसी दूसरे व्यक्ति को सुनायी नही देना चाहिए। इस तरह सुमिरन करना आदत डालनी वाली बात ही है। लगातार चलने रहने वाला सुमिरन प्रेम और श्रद्धा भरे जीवन में प्रवेश का गुप्त द्वार है।


क़ुरान मजीद
चाहे तुम बात उच्च स्वर में कहो (या धीमे स्वर में ), वह तो छिपी हुई बातों और अत्यन्त निहित बात को भी जानता है। अल्लाह ! उसके सिवा कोई 'इलाह' ( पूज्य ) नहीं। उसके सभी नाम शुभ हैं।

नाम या परमात्मा की बराबरी नही
परमात्मा और उसका नाम संसार की मीठी से मीठी और प्यारी से प्यारी चीजों से भी कहीं अधिक मीठा और प्यारा है ।  संसार की कोई भी वस्तु परमात्मा और उसके नाम की बराबरी नहीं कर सकता ।


सतगुरु अंग-संग महसूस
जब सुमिरन लगातार चलता रहता है तो हमें अपने अंदर दिव्य-चेतना का अस्तित्व महसूस होने लगता है । यह अपने आप में ही हमारा भजन-सुमिरन बन जाता है। सतगुरु के दिए नाम का प्रेमपूर्वक सुमिरन करने से सतगुरु अंग-संग महसूस होते हैं। भजन-सुमिरन सहज भाव से करना चाहिए। सुमिरन करने की गति तेज नहीं होनी चाहिए कि उसके साथ कदम मिलाना मुश्किल हो जाये।


सतगुरु का ध्यान करना लाभदायक
सुमिरन के अभ्यास को प्रभावशाली बनाने के लिए सुमिरन करते समय सतगुरु का ध्यान करना लाभदायक होता है। नामदान देते समय सतगुरु ने ही हमें यह सुमिरन दिया था।  नि:संदेह, हमारे लिए सतगुरु और उसके दिए सुमिरन के शब्दों के साथ अटूट संबंध है। जब कोई हमारे प्रियतम का नाम लेता है तो प्रियतम का स्वरूप एकदम हमारे मन के सामने आ जाता है। जब हम भजन-सुमिरन करते हैं तो धीरे-धीरे हम अपने मन को यह अहसास दिलाने में सहायता देते हैं कि दिन-भर सतगुरु हमारे अंग-संग रहते हैं।

                   || राधास्वामी ||

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