विकारों को उलटाना ताकि भजन-सुमिरन बने

निर्मल सोच भजन सुमिरन में विघ्न डालने वाले भावों और विचारों को नई दिशा देने में सहायता करती है। पर हैरानी की बात है कि मन इतना अडियल है कि रूहानी अभ्यास के बारे में सोचते ही यह सभी कुछ आगे की बजाय पीछे कर देता है। हम काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार की बजाय मन में इनके विरोधी गुण पैदा करने की बात करते हैं। ताकि हमें भजन सुमिरन और रूहानी उन्नति में सहायता मिले। क्या हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं। आमतौर पर होता है कि मन बीच में आ जाता है और सब कुछ उलट-पुलट कर देता है। उदाहरण के तौर पर काम, इंद्रियों को भोगों की ओर खींचता है। इसका विरोधी गुण, शील या संयम है। पर क्या अपने आप को रूहानी मार्ग का यात्री कहने के बावजूद, हम शील या संयम धारण करते हैं? क्या यह एक आश्चर्य नहीं है कि हम संयम का केवल भजन सुमिरन के अभ्यास में ही प्रयोग करते हैं? हम यहां तक कह जाते हैं कि अधिक भजन सुमिरन खतरनाक या हानिकारक होता है। इसके विपरीत हम काम-वासना में बह जाने की अपनी कमजोरी के पक्ष में दलीलें देते हैं। हम यहां तक कह देते हैं कि मैंने तो अनुभव प्राप्त करने के लिए भोग, भोगा होगा था। हम दलित देते है...