इसको पढ़ोगे तो पार हो जाओगे

संत हमेशा रूहानियत की बात करते हैं। जब भी बाबाजी सत्संग फरमाते हैं तो वह हमेशा इंद्रियों के भोगों से दूर रहने के लिए कहते रहते हैं। हमेशा समझाते हैं कि भाई जो भी कुछ हम अपनी आंखों से देख रहे हैं। वह सब नाशवान है। उसको नाश हो जाना है। रूहानियत में केवल नम्रता और प्रेम भाव की आवश्यकता है। और यह प्रेम भाव ही हमारे भजन सुमिरन में मदद करता है। बाबा जी समझाते हैं :- बड़ी मुश्किल से हमें यह मनुष्य का जामा मिला है। लेकिन यहां इस जामे में आकर मन के अधीन होकर हम इंद्रियों के भागों में फंसे बैठे हैं। जितना भी हमारा दुनिया से ताल्लुक या संबंध है। सब हमारे शरीर के जरिए ही है। जब तक हम शरीर में बैठे हैं। हमें यह यार, दोस्त, रिश्तेदार, भाई-बहन और दुनिया की धन-दौलत, कौम, मुल्क वगैरह सब अपने ही नजर आते हैं। और हम इन्हें अपना बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब हमारी आत्मा इस मनुष्य शरीर को छोड़कर चली जाती है। जब इस दुनिया के सारे ढकोसले यही रह जाते हैं। इसलिए समझाते हैं कि भाई भजन सुमिरन करो। परमात्मा का ध्यान करो। इनको भी पढ़े विकारों को उलटाना ताकि भजन-सुमिरन बने कोई भी रिश्तेदार मौत...