शनिवार, 15 दिसंबर 2018

इसको पढ़ोगे तो पार हो जाओगे

संत हमेशा रूहानियत की बात करते हैं। जब भी बाबाजी सत्संग फरमाते हैं तो वह हमेशा इंद्रियों के भोगों से दूर रहने के लिए कहते रहते हैं। हमेशा समझाते हैं कि भाई जो भी कुछ हम अपनी आंखों से देख रहे हैं। वह सब नाशवान है। उसको नाश हो जाना है। रूहानियत में केवल नम्रता और प्रेम भाव की आवश्यकता है। और यह प्रेम भाव ही हमारे भजन सुमिरन में मदद करता है।


बाबा जी समझाते हैं :-
बड़ी मुश्किल से हमें यह मनुष्य का जामा मिला है। लेकिन यहां इस जामे में आकर मन के अधीन होकर हम इंद्रियों के भागों में फंसे बैठे हैं। जितना भी हमारा दुनिया से ताल्लुक या संबंध है। सब हमारे शरीर के जरिए ही है। जब तक हम शरीर में बैठे हैं। हमें यह यार, दोस्त, रिश्तेदार, भाई-बहन और दुनिया की धन-दौलत, कौम, मुल्क वगैरह सब अपने ही नजर आते हैं। और हम इन्हें अपना बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब हमारी आत्मा इस मनुष्य शरीर को छोड़कर चली जाती है। जब इस दुनिया के सारे ढकोसले यही रह जाते हैं। इसलिए समझाते हैं कि भाई भजन सुमिरन करो। परमात्मा का ध्यान करो।

कोई भी रिश्तेदार मौत के समय काम नहीं आता। जिस प्रकार एक पानी की टेंकी में कितना भी पानी क्यों न भरा हो। उसमें एक नल लगा कर खोल दे तो पूरी टेंकी खाली हो जाती है। इसी प्रकार हमारा यह शरीर सांसो का भंडार है। जब तक हमे साँस जा रही है। हम किस तरह इस दुनिया में एक-दूसरे के लिए भागदौड़ कर रहे हैं। दुनिया में अपने पेट के लिए और लोगों के लिए हम क्या नहीं करते। लेकिन हम उस समय को भूल जाते हैं। कि जिस समय यह सांसो का भंडार समाप्त हो जाएगा। लोग हमारी मौत पर तार भेजेंगे और टेलीफोन करेंगे। सगे संबंधी इकट्ठे होकर इस शरीर को जिसे हमें इतना प्यार था या तो अग्नि के सुपुर्द कर देंगे या मिट्टी में दफना देंगे।


इसीलिए संत समझाते हैं
कि भाई यह मनुष्य जन्म कुछ समय के लिए मिला है। हमें इस मनुष्य जन्म का लाभ उठाना है। मनुष्य जन्म भी एक ऐसा है जिसमें पांच तत्व होते हैं। हमें भजन सिमरन करना चाहिए। जितना समय मिले, जब भी मिले भजन करना चाहिए। क्योंकि भजन सुमिरन ही एक रास्ता है जिसके जरिए हम परमात्मा को पा सकते हैं। हम अपने निजी घर जा सकते हैं। एक यही आखिरी मौका है। हिम्मत करेंगे, मंजिल को पा जाएंगे। अन्यथा इस चौरासी की जाम में ऐसे ही फसते रहेंगे आते रहेंगे जाते रहेंगे।

                     || राधास्वामी ||

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