गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

गुरमुख और मनमुख में अंतर, बाबा जी ने समझाया

संत हमेसा सत्संग पर जोर देते हैं, क्योंकि सत्संग में जाने से यह हमें पता चलता है कि मनमुख और गुरमुख में क्या फर्क है।  गुरमुख केवल गुरू की बातों पर अमल करते हैं। और मनमुख लोग केवल मन के कहे में चलते हैं। मनमुख दुनिया की इच्छाओं में फंसे रहते  हैं। हमें केवल गुरु के हुकुम में चलना है।


मनमुख लोगों की सोच :-
मन मुख लोग हमेशा भूखे रहते हैं। परमात्मा उन्हें जो चाहे चीजें बख्श दें, कितनी ही नेक संतान हो, धन-दौलत हो, दुनिया में मान इज्जत और पढ़ाई हो, सेहत हो लेकिन वे फिर भी कभी परमात्मा से परमात्मा को नहीं मांगते। वह हमेशा परमात्मा से अपनी दुनिया की इच्छाएं और तृष्णाऐं पूरी करवाना चाहते हैं। वे लोग हमेशा दुनिया के पदार्थों और शक्लों की और ही भागते हैं।

गुरु अमरदास जी समझाते हैं
कि ऐसे लोगों की कभी भूले-भटके भी संगति नहीं करनी चाहिए। बल्कि उनसे लाखों कोस दूर रहना चाहिए। फिर किस की संगति करनी चाहिए? आप जी उपदेश देते हैं। हे परमात्मा! संतों-महात्माओं की संगति ओर सोहबत दे, ताकि तेरा पता चले, तेरी तरफ हमारा ख्याल जाये।


महात्मा हमेशा सत्संग पर जोर देते हैं, क्योंकि संतों के सत्संग में जाकर ही पता चलता है कि आत्मा और परमात्मा का रिश्ता क्या है, आत्मा और परमात्मा के दरमियान रुकावट किस चीज की है, और वह रुकावट हमारे अंदर से किस तरह दूर हो सकती है। महात्मा सत्संग उनको नहीं कहते जहां एक-दूसरे की निंदा करते हो।  या जहां पुराने राजा-महाराजाओं की कहानियां सुनाई जाती हो। संतो महात्माओं के सत्संग में किसी की निंदा नहीं की जाती, वहां पर केवल सिर्फ मालिक से मिलने का शौक और प्यार पैदा करते हैं। और हमें मालिक से मिलने का सही रास्ता, तरीका और साधन बताते हैं।

बाबाजी इन बातों को भी पढें :- अगर इसको नही पढ़ा तो सब अधूरा ही समझो

इसलिए हमें भी सत्संग में जाना चाहिए। गुरु की बताई गई बातों पर अमल करना चाहिए। भजन सिमरन करना चाहिए ताकि मनुष्य जन्म का लाभ उठा सकें और इस आवागमन के चक्कर से छुटकारा हो सके।

                   || राधास्वामी ||

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