परमात्मा की कृपा हम सब पर सदा बनी रहती है। परमात्मा कभी भी हमसे दूर नहीं होते। परमात्मा तो हमारे अंदर बसे हुए हैं। परमात्मा का वास हमारे अंदर है। संत महात्मा हर सत्संग में यही बात फरमाते आते रहते हैं, कि परमात्मा को कहीं बाहर नहीं खोजना, परमात्मा तो खुद हमारे अंदर विराजमान है।
नम्रता और दीनता
जब हमारे अंदर नम्रता और दीनता आएगी तो हमारा ध्यान मालिक की भक्ति और प्यार की ओर जाएगा। यह केवल संतों की संगति के द्वारा ही संभव हो सकता है और ऐसे संतों की संगति मालिक की बख्शीश और कृपा से ही मिलती है। सच तो यह है कि मालिक बक्शीश करें, तभी हमारा ख्याल उसकी भक्ति और प्यार की ओर जाता है।
जब हमारे अंदर नम्रता और दीनता आएगी तो हमारा ध्यान मालिक की भक्ति और प्यार की ओर जाएगा। यह केवल संतों की संगति के द्वारा ही संभव हो सकता है और ऐसे संतों की संगति मालिक की बख्शीश और कृपा से ही मिलती है। सच तो यह है कि मालिक बक्शीश करें, तभी हमारा ख्याल उसकी भक्ति और प्यार की ओर जाता है।
यानी उस मालिक को मंजूर होगा तभी हम उसकी भक्ति कर सकेंगे। हम दुनिया के जीव अंधे हैं, कुल मालिक आंखों वाला है। अंधे की ताकत नहीं कि वह आंखों वाले को पकड़ सके, जब तक आंखों वाला अंधे को आवाज देकर, उसे अपने पास नहीं बुलाता या अपनी अंगुली पकड़ कर उसे अपने साथ नहीं ले चलता। हम दुनिया के जीव इस माया के जाल में फस कर मालिक को भूलकर अंधे और बहरे हो गए हैं। मालिक ही कृपा करें तो हमारा ख्याल उसकी भक्ति की ओर जा सकता है।
हज़रत इसा भी बाइबल में कहते हैं
'इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि कोई भी मनुष्य मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक कि मेरे पिता से उसे यह बक्शीश ना मिली हो।'
'कोई मनुष्य मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।'
यानी जीव की कोई ताकत नहीं की वह मालिक की ओर आए। जब तक कि मालिक ही उस पर यह बक्शीश न करें।
यानी जीव की कोई ताकत नहीं की वह मालिक की ओर आए। जब तक कि मालिक ही उस पर यह बक्शीश न करें।
संत महात्मा समझाते हैं
कि जब तक हम उस परमपिता परमात्मा के हुकम में नहीं चलेंगे, जब तक हमें इसी तरह इस मनुष्य जन्म में बार-बार जन्म लेना पड़ेगा। इस जन्म-मरण के चक्कर से छुटकारा नहीं हो सकता।
हां अगर हम परमात्मा के हुक्म में चलते हैं, हक हलाल की कमाई करते हैं, भजन सुमिरन करते हैं तो निश्चित ही हम उस परमपिता परमात्मा के साथ मिल सकते हैं। हम परमात्मा को पा सकते हैं। हमें भी चाहिए कि हम भजन सुमिरन करें और अपने जीवन को सफल बनायें।
|| राधास्वामी ||
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