बुधवार, 26 दिसंबर 2018

दान देने से भी कर्म बनते है।अहंकार आता है।

गुरुमत पूर्ण ज्ञानी सतगुरु के बताए मार्ग और आदेश पर चलने का नाम है।  यह सिद्धांत पूर्ण गुरु के शिष्य की संपूर्ण रहनी पर लागू होता है और दान-पुण्य आदि का विषय भी इसी में शामिल है।



दान ऐश का साधन नही
पंडित, पुरोहित, महंत, मुल्ला, पादरी तथा मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, सत्संग घरों आदि के प्रबंधक भी इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि दान का धन ऐश, आराम और विलास का बहुत आसान साधन है। इस भावना को जितनी जल्दी त्याग दिया जाए, अच्छा है।




कबीर साहिब फरमाते हैं
कि गृहस्थ और दुनियादार लोग अनेक कामनाएं मन में रखकर दान देते हैं। साधु कहलाने वाले जो लोग समझते हैं कि वह इस इस पराया धन को हजम कर लेंगे वे अपने आप को धोखा दे रहे हैं।




दान देने का तरीका
दान विवेकपूर्वक देना चाहिए। ऐसे लोगों को दान देना उचित नहीं है, जो दान से प्राप्त धन को शराब आदि में खर्च करते हैं। ऐसा दान जीव के बंधन का कारण बनता है। परंतु परमात्मा की साथ अभेद हो चुके महात्माओं के सुझाव के अनुसार लोकहित में लगाया गया धन परमार्थ में सहायक होता है।


                || राधास्वामी ||

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