सोमवार, 24 दिसंबर 2018

हक हलाल की कमाई से सुख और आनंद की प्राप्ति होती हैं

जो लोग सच्चे दिल से महसूस करते हैं कि सच्चा और स्थायी आनंद, नेक जीवन और प्रभु प्राप्ति में ही है। वे प्रसन्नतापूर्वक हक-हलाल की कमाई का नियम स्वीकार करते हैं। जो लोग आचरण की पवित्रता और आत्मिक आनंद से परिचित है या जो इसकी प्राप्ति के इच्छुक है, वे अनुचित ढंग से की गई कमाई का त्याग करते हैं। इस प्रकार की कमाई का त्याग उन्हें परमार्थरूपी हीरे-जवाहरात की प्राप्ति के लिए ईटों-पत्थरों की कुर्बानी के समान प्रतीत होता है।



भूखे की कभी भूख नही मिटती :-
परंतु जो लोग इस आनंद से अनजान है और जिन्हें इसे प्राप्त करने का कोई चाह नहीं है। उन्हें दुनिया की नाशवान भोग और धन-दौलत ही सब कुछ प्रतीत होते हैं। वे यह नहीं जानते कि यह भोग और अनुचित ढंग से कमाया गया धन लोक और परलोक दोनों में ही उनकी दुर्दशा का कारण बनता है। अतः मनुष्य को चाहिए कि जो कुछ अपनी हक-हलाल की कमाई से मिले उस पर संतोष करें तथा भोगों की लालच से बचे। धन की तृष्णा अग्नि के समान है जो लकड़ी डालने पर कभी भी शांत नहीं होती बल्कि और भडक उठती है। सारे संसार का धन भी लालची के मन की भूख को कभी नहीं मिटा सकता।





मनुष्य की सोच : -
हमारे मन में हमेशा यह चिंता रहती है कि यदि हमने बेईमानी नहीं करेंगे तो संसार के काम नहीं चलेंगे। परन्तु जिन लोगों ने अपने जीवन में नेकी, सच्चाई और ईमानदारी से काम किया है। वे सदा यही कहते हैं कि ईमानदारी की कमाई में बहुत बरकत अथवा सुख-समृद्धि है और प्रभु स्वयं किसी ने किसी प्रकार उनके सभी कार्य पूर्ण कर देते हैं।




यह ठीक है कि अपनी मेहनत और नेक-कमाई के द्वारा कोई व्यक्ति ऐशो इशरत तो नहीं कर सकता, परंतु यह कमाई मांस, इंद्रियों के भोगों तथा अन्य कई प्रकार के दुराचार तथा पापों से बचाती है। यह मन में संतोष तथा प्रभु का प्रेम और विश्वास पैदा करती है और सच्ची और सच्चे परमार्थ की नींव तैयार करती है।


                   ||राधास्वामी||

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