इस जरिए परमात्मा को हम पा सकते हैं, विधि जानने के लिए पढें

संत महात्मा बताते हैं कि यह मनुष्य चोला बड़ी मुश्किल से मिलता है| और एक यह एक ही साधन है| जिसके जरिए हम आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं| मनुष्य जन्म ही यह ऐसा है जिसमें हम बैठकर भजन सुमिरन करके चौरासी लाख जून की जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकते हैं| लेकिन यहां इस जामे में आकर मंकी अधीन होकर हम इंद्रियों के भोग में फंसे बैठे हैं| और हम इतना इन इंद्रियों के भोगों में लिप्त हो गए हैं कि सब कुछ भूल बैठे हैं| यहां तक कि परमात्मा को भी भूल बैठे हैं|




संत महात्मा समझाते हैं
जितना भी हमारा दुनिया से ताल्लुक या संबंध है| सब हमारे शरीर के जरिए ही है| जब तक हम शरीर में बैठे हैं| हमें ये यार-दोस्त, रिश्तेदार, भाई-बहन और दुनिया की धन-दौलत, मुल्क वगैरह सब अपने ही नजर आते हैं| या कम से कम हम इन्हें अपना बनाने की कोशिश करते हैं| जिस समय शरीर से हमारा साथ छूट जाता है| इन सब चीजों से भी संबंध टूट जाता है| हमें चाहिए कि जब तक परमात्मा ने इस शरीर में बैठने का मौका दिया है| इससे काम लें| इसमें बैठकर न तो इसे इतना दुख देना है कि मालिक की भक्ति ही ना हो सके और ना ही इसे इतना सुख और आराम में रखना है कि हमारा ख्याल ऐशो -इशरत की ओर चला जाए| मालिक भक्ति ही हमारा असली काम है| और हमें वही इससे करवाना है|




संत समझाते हैं
कि यह शरीर काल का पिंजरा है| किराए का मकान है| जितनी सांस मालिक ने हमें बक्से हैं| उनको भुगतने के बाद इसे छोड़ना पड़ेगा| यह शरीर किसी का साथ नहीं देता| यहाँ बड़े-बड़े राजा-महाराजा, बादशाह, तानाशाह जिनसे दुनिया थर-थर कांपती थी| आज उनकी कब्रों को हम किस तरह नफरत भरी नजरों से देखते हैं| कभी हमारी कब्रों को भी लोग इसी तरह से देखेंगे| इसलिए महात्मा हमें गफलत की नींद से बेदार करते हैं कि उस समय को अपनी आंखों के सामने रखो| जब कोई भी चीज तुम्हारी मदद नहीं करेगी| यह भाई-बहन, रिश्तेदार, मित्र सब हमारे आस पास ही बैठे रह जाते हैं| इन्हें यह भी पता नहीं चलता की मौत की फिर फरिश्ते किस समय और किस रास्ते से आकर हमें पकड़कर ले जाते हैं| रोने-धोने के अलावा कुछ नहीं कर सकते| हमारी क्या मदद कर सकते हैं| उन सब के साथ हमारा लेने देने का संबंध है| गरज का प्यार है| जब उनसे हमारा हिसाब हो जाएगा| हम इस दुनिया को छोड़ कर चले जाते हैं और उनसे बिछड़ जाते हैं|


इसीलिए संत महात्मा भजन सुमिरन पर जोर देते हैं| और कहते हैं कि जब तक हमारी सांसे चल रही है| जब तक हमें भजन सिमरन करना चाहिए| पता नहीं किस समय मौत आ जाएं| हमारे सारे प्लान पल भर में खत्म हो जाएंगे| इसलिए हमें चाहिए कि जब भी समय मिले भजन सुमिरन पर जो देना चाहिए| ज्यादा से ज्यादा सुमिरन करना चाहिए| ज्यादा से ज्यादा भजन पर बैठना चाहिए| जिससे हम परमात्मा को पा सकें|
  
                     || राधा स्वामी ||

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