नेक-कमाई परमात्मा की प्राप्ति का आसान रास्ता हैं।

सतों ने यह विचार भी बलपूर्वक प्रकट किया है कि परिश्रम का जाति-पाति से कोई संबंध नहीं है और कोई भी व्यवसाय छोटा या नीच नहीं है। जिस भी सदाचारपूर्ण कार्य के द्वारा हम ईमानदारी के साथ अपनी जीविका कमा सकें, वही अच्छा काम है और रूहानी तरक्की में हमारी सहायता करता है। इसीलिए संत महात्मा समझाते हैं कि नेक कमाई करो, हक हलाल की कमाई खाओ। गुरु रविदास जी ने 'सुकीरति' या नेक कमाई को इतना महत्व दिया है कि आपने सुकृत को ही सच्चा धर्म, सच्ची शांति का स्त्रोत और भवसागर से पार होने के लिए सरल तथा उत्तम साधन माना है। आप कहते हैं कि परमार्थ के प्रेमी को, श्रम को ही ईश्वर मानते हुए, नेक कमाई में लगे रहना चाहिए। ऐसा सुकृत, मनुष्य के रुहानी अभ्यास में सहायक होकर उसे प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर दृढ़ता पूर्वक चलने की प्रेरणा देता है। बाबाजी के विचार :- दान देने से भी कर्म बनते है।अहंकार आता है। आप जी स्पष्ट करते हैं कि केवल श्रम ही काफी नहीं है, श्रम का नेक और पवित्र होना भी अत्यंत आवश्यक है। जिनके पास धर्म अथवा नीतिपूर्ण 'श्रमसाधना' (हक हलाल की कमाई ) और प्रभु भक्ति का दोह...