शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

सच्ची भक्ति और पूजा यानी भजन सुमिरन

बाबा जी हर सत्संग में सच्ची भक्ति और भजन सुमिरन पर जोर देते हैं| हर सत्संग में बाबा जी फरमाते हैं कि ज्यादा से ज्यादा भजन सुमिरन को समय देना चाहिए| क्योंकि एक मनुष्य जन्म ही ऐसा है, जिसमें बैठकर हम भजन सुमिरन कर सकते हैं| इस आवागमन के चक्कर से छुटकारा पा सकते हैं| हम परमात्मा को पा सकते हैं|


गुरु अमरदास जी का कथन है:
सचै सबद सची पत होई|| बिन नावै मुकत न पावै कोई||
बिन सतगुर को नाउ न पाए|| प्रभ ऐसा बणत भणाई हे||


मालिक ने अपनी मिलने के लिए यही कुदरती कानून बनाया है कि सच्चे शब्द या नाम की कमाई के बगैर हमें कभी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते| और सतगुरु की बिना हमें नाम की कमाई करने के तरीके और साधन का पता नहीं चल सकता|

हजरत ईसा भी इस ओर इशारा करते हैं:
'मैं तुझसे सच कहता हूँ, जब तक मनुष्य दोबारा जन्म नहीं लेता, वह खुदा की बादशाहत नहीं देख सकता| नया जन्म लेने से मतलब उस नाम या शब्द से जुड़ना है, जिसे पाकर इस नाशवान संसार से हमारा संबंध टूट जाता है| और हम अपने परमपिता परमात्मा के घर जाने की काबिल बन जाते हैं|

गुरु नानक जी ने भी अपनी वाणी में फरमाया है:
सतगुर कै जनमे गवन मिटाइया||


भजन सुमिरन के बिना हम चौरासी की जेलखाने में चक्कर काट रहे हैं| दुनिया व्यर्थ ही भ्रमों में फंसकर इस चौरासी के जेलखाने में भटक रही है| उस नाम के बगैर तो मुक्ति का कोई रास्ता ही नहीं है| नाम की कमाई करने का रास्ता छोड़कर अगर हम किसी और रास्ते पर चलने की कोशिश करते हैं| तो अंत में मौत के समय पछताना पड़ता है| कि यूं ही अपने कीमती समय को व्यर्थ ही बातों में गंवा दिया| इसलिए बार-बार संत महात्मा समझाते हैं, कि नाम की कमाई करो| भजन सुमिरन करो और परमात्मा को पाओ|
              
                    ||  राधा स्वामी  ||

बुधवार, 28 नवंबर 2018

मृत्यु पर जीत पाने की तैयारी का उत्तम साधन:- भजन सुमिरन

चरण सिंह महाराज जी अक्षर सत्संग में फ़रमाया करते थे कि भजन-सिमरन वह ताकत है, जिसको करने से मृत्यु का भय भी खत्म हो जाता है| मौत आने पर मनुष्य घबराता नहीं| क्योंकि उसने जीते जी मरना सीख लिया| इसीलिए महाराज चरण सिंह जी समझाते हैं कि भाई भजन सुमिरन बहुत जरूरी है|

असल में भजन शरीर को छोड़ने की तैयारी मात्र है| यही भजन का असली उद्देश्य है| मंच पर नाटक खेलने से पहले आप अपने पार्ट को कई बार दोहराते हैं| ताकि आप अपना पार्ट अदा करने में पूरी तरह कुशल हो जायें| इसी प्रकार भजन मृत्यु का दैनिक रिहर्सल यह पूर्व अभ्यास है| ताकि हम जब भी और जिस तरह से भी मरेंगें, उसके लिए पूरी तरह तैयार हो जाएं|


भजन-सुमिरन द्वारा प्राप्त हुई एकाग्रता से अंत समय मन और आत्मा को शक्ति और सही दिशा प्राप्त होती हैं| संत महात्मा समझाते हैं कि भजन सुमिरन द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है|

सेंट पॉल ने कहा है :- (मैं रोज मरता हूं)

मौलाना रूम ने भी यही नसीहत दी है

कितनी खुशकिस्मती की बात हो अगर तू एक रात रूह को शरीर से बाहर निकाल  ले, और शरीर की कब्र पीछे छोड़कर अंदरूनी आसमानों पर चढ़ जाए| अगर तेरी रूह शरीर को खाली कर दे तो तू मौत की तलवार के वार से बचाएगा और एक ऐसे बाग में दाखिल हो जाएगा जहां कभी पतझड़ नहीं होती||


जीते जी मरने का अभ्यास करने के लिए ध्यान को तीसरे दिल पर टिकाना पहला कदम है| भजन-सुमिरन के लिए निश्चित किए गए समय के साथ-साथ ध्यान को हर समय तीसरे तिल पर टिकने  का अभ्यास भी करना चाहिए| ऐसा अभ्यास हमारे लिए और भी अधिक लाभदायक होगा| अगर इसे उन पलों में किया जाए जब हालात मृत्यु के समय से मिलते-जुलते हों; जबकि सभी कुछ अव्यवस्थित-सा बिखरा-बिखरा हो, या हमारी काबू से बाहर हो| वह पल तब हो सकते हैं जब मन पर क्रोध या लोभ का हमला हो, जब किसी दुख या पीड़ा में से गुजर रहे हो, जब कुछ ऐसी परिस्थितियों को संभालने का यतन कर रहे हों जो हमारे बस से बाहर हो गई हैं| ऐसे हालात हमें निर्लिप्त रहने का गुण सिखाने वाले उत्तम अवसर होते हैं| यह अवसर हमें सिमरन द्वारा अपना ध्यान तीसरे दिल पर एकाग्र करके अन्य हर चीज से ऊपर उठ जाने की शिक्षा देते हैं|


इसीलिए संत महात्मा बार बार इस बात पर जोर देते हैं कि ज्यादा से ज्यादा भजन सिमरन करना चाहिए| अपने मन को एकाग्र करना चाहिए और अपने ध्यान को तीसरे तिल पर टिकना चाहिए ताकि आपका मनुष्य जन्म सफल हो जाए|

                         || राधा स्वामी ||

संत महात्मा हमें आध्यात्मिक युक्ति समझाते है

संत-महात्मा एक ही बात पर ज्यादा जोर देते हैं, कि मनुष्य को भजन सिमरन पर ध्यान देना चाहिए| क्योंकि मनुष्य जन्म ही एक ऐसा जीवन है| जिसमे बैठकर हम भजन सुमिरन कर सकते हैं| जिसमें विवेक की शक्ति है|


किसी संत ने कहा है :-
हे इंसान! जब तक तू जीते जी नहीं मरता, तू असली फल कैसे पा सकता है? इसलिए मरने से पहले मर और इस शरीर का लाभ उठा ले, तु कई बार मरा पर पर्दों में ही ढका रहा, क्योंकि तुझे सही अर्थों में मरने की युक्ति प्राप्त नहीं हुई|

मृत्यु पर जीत प्राप्त की जा सकती है| संत महात्मा समझाते हैं कि शरीर की मृत्यु के बाद की जीवन का अनुभव प्राप्त करने की एक युक्ति है और वह युक्ति या विधि सीखी जा सकती है| संत-महात्मा हमें अपनी मर्जी से जब चाहे शरीर को खाली कर देने और जब चाहे शरीर में वापस आ जाने की युक्ति सिखाते हैं| हमें उनसे ज्ञान प्राप्त होता है| कि उस युक्ति पर अमल करने से और उस युक्ति के अनुसार जीवन को ढालने से हम शरीर और मन के पार की जगत की यात्रा कर सकते हैं|

इन पर भी विचार करे :-
इस युक्ति को अपनाने से हमारी स्पष्ट सोचने की शक्ति बढ़ती है| हमें मानसिक शांति मिलती है और आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है| संत-महात्मा समझाते हैं कि उनके बताए गए अभ्यास में पूर्णता प्राप्त करने से हमारा जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा हो जाता है और हमें अमर आनंद की प्राप्ति हो जाती है|

इसलिए हमें भी चाहिए की हर वक्त मालिक की याद में बिताए और पूरा समय भजन सिमरन को दें! ताकि हमारा जन्म-मरण का चक्र खत्म हो और परमात्मा से मिलाप हो|
      
                              || राधा स्वामी ||

मनुष्य जन्म में आने का उद्देश्य क्या है

परमात्मा ने सृष्टि की रचना करके इस चौरासी लाख योनियों में बांटा है! कई लाख प्रकार के वृक्ष, कई लाख प्रकार के कीड़े-पतंगे, कई लाख प्रकार के पक्षी,
कई लाख प्रकार के पानी की जीव, कई लाख प्रकार के पशु, कई लाख प्रकार के भूत-प्रेत, यक्ष, किन्नर, गंधर्व, देवी-देवता इंसान आदि! जो इस धरती पर है! हम अपने कर्मों के कारण इस चौरासी की जेल खाने में फंसे हुए हैं!

हमारी आत्मा परमात्मा से मिलकर ही इस जेल खाने से निकल सकती है! और परमात्मा हमें यह मनुष्य चोला केवल इसीलिए बक्सता है! कि हम उसकी भक्ति करके देह के बंधनों से छुटकारा प्राप्त कर सके!

मनुष्य जन्म के कई फायदे

अगर मनुष्य के चोले में आने का कोई लाभ है, तो सिर्फ यही है! इस चोले को यह फख्र या गौरव प्राप्त है, कि इसमें बैठकर परमात्मा से मिलाप किया जा सकता है! परमात्मा ने इंसान के जामे को सबसे ऊंचा रखा है! यही सीढी का आखिरी डंडा है! अगर कोई कोशिश करता है तो मकान की छत पर चले जाते है,यानी
मालिक से मिल जाते हैं! अगर पैर से चलता है तो सीधे नीचे चौरासी के जेल खाने में आ जाते हैं! इसीलिए संत महात्मा फरमाते हैं कि ज्यादा से ज्यादा इंसान को भजन सिमरन में समय बिताना चाहिए! यानी के हर रोज कम से कम ढाई घंटे भजन सिमरन करना चाहिए!

इंसानी चोला भी आपका साथ नहीं देता
यह इंसान का जामा परमात्मा ने हमें अपना काम करने के लिए बख्शा है! अपना काम वही है, जो हमें वापस ले जाकर परमात्मा से मिलाता है! वह काम परमात्मा की भक्ति है! यह दुनिया एक रात के सपने की तरह है! इसकी कोई असलियत नहीं है! इसे देखकर यह नहीं भूलना चाहिए, कि जो कुछ भी हम आंखों से देख रहे हैं! जमीन-जायदाद, धन-दौलत, रिश्तेदार और यहां तक कि हमारा शरीर भी एक दिन हमारा साथ छोड़ देगा! इसलिए आप उपदेश देते हैं कि इस अमूल्य अवसर से लाभ उठाओ और अपने आवागमन के चक्कर से छुटकारा पाओ! ज्यादा से ज्यादा भजन सुमिरन करें! परमात्मा में ध्यान लगाए! क्योंकि यही एक अवसर है! जिसके जरिए आप चौरासी के जेल खाने से छुटकारा पा सकते हैं!

                       || राधा स्वामी ||

सोमवार, 26 नवंबर 2018

भजन सुमिरन से मनुष्य जन्म में आने का उद्देश्य पूरा होता है

महाराज चरण सिंह जी

अक्सर फरमाया करते थे कि मनुष्य जन्म में आने का केवल एक ही मकसद है| एक ही उद्देश्य है| इस आवागमन के चक्कर से छुटकारा मिले और हम अपने धाम यानि परमात्मा के पास पहुंच जाएं| तो हमारा उद्देश्य पूरा हो जाएगा|


भजन सिमरन जीवन का एक ढंग है
यह नहीं कि आप केवल कुछ घंटों के लिए एक कमरे में अपने आप को बंद कर ले और फिर सारा दिन भजन सुमिरन को भूले रहे| भजन को आपके जीवन का एक अंग बन जाना चाहिए और आप के हर दैनिक कार्य और व्यवहार में चलना चाहिए| यही अपने आप में भजन का प्रभाव है|


संतमत की शिक्षा
के अनुसार रहना संतमत के वातावरण में रहना अपने आप में भजन ही है| आप अपने प्रतिदिन के भजन सुमिरन के लिए वह वातावरण क्षण क्षण बना रहे हैं| जो भी आप काम करें| वह भजन में बैठने के लिए आपके अंदर शौक और प्यार पैदा करेगा| इस प्रकार भजन हमारे लिए जीने का एक तरीका बन जाएगा| क्योंकि हम हर वक्त अपने भजन के द्वारा पैदा किए गए वातावरण में रहने और कार्य करने लगेंगे| जिससे भजन सिमरन में मन लगेगा और आध्यात्मिक रास्ते में बहुत सहायता मिलेगी|


              || राधा स्वामी जी ||

संत मार्ग की अहमियत कोई विरला ही जाने

राधा स्वामी सत्संग ब्यास में हमेशा हर धर्म का सम्मान किया जाता है! सभी धर्मों का जिक्र किया जाता है! सत्संग में किसी की नींद आए चुगली नहीं की जाती| यहां पर केवल परमार्थ की बातें ही की जाती है! आध्यात्मिक का ज्ञान दिया जाता है!


संतों का उपदेश

फरीद सकर खंड निवात गुड म माखीयो मांझा दूध||
सभे वसतू मीठीआं रब न पूजन तुध||

बाबा फरीद कहते हैं- शक्कर, गुड, खांड, मिश्री, गुड, शहद, भैंस का दूध- ये सब चीजें मीठी है, लेकिन हे परमात्मा! इनमें से कोई भी तुझ तक नहीं पहुंचती यानी तेरी या तेरे नाम की मिठास का मुकाबला नहीं कर सकती|

महात्मा चाहे किसी जाति, धर्म, देश या समय में क्यों न आए हों, सबका एक ही संदेश और एक ही अनुभव है| वे दुनिया में जाति और धर्म बनाने के लिए नहीं आते|, न ही हमें एक-दूसरे से लड़ना भिड़ना-सिखाने आते हैं, बल्कि वह हमारे अंदर उस मालिक की भक्ति का शौक और प्यार पैदा करने और इस देह के बंधनों से आजाद करके हमें मालिक से मिलाने के लिए आते हैं|

संतो महात्माओं की जाने के बाद हमारी सोच

लेकिन हम दुनिया के जीव मालिक के भक्तों और प्यारों के जाने के बाद बाहरमुखी हो जाते हैं, कर्मकांड में उलझ जाते हैं और उन महात्माओं के असली अनुभव और उपदेश को बिल्कुल भूल जाते हैं| हम उनकी असली शिक्षा और रूहानियत को जातियों और धर्म की छोटे-छोटे दायरे में बंद करने की कोशिश करते हैं और एक-दूसरे से लड़ना-भिड़ना शुरू कर देते हैं| जिन महात्माओं की शिक्षा सारे संसार के लिए होती है, उनके उपदेश को जब हमें छोटे-छोटे दायर में बंद करके कौमों-मज़हबों की शक्ल देने की कोशिश करते हैं तो इससे ज्यादा उन महात्माओं के साथ हम और क्या बेइंसाफी कर सकते हैं?

यह सब कुछ हम अपनी पेट की खातिर यह मान बड़ाई के लिए करते हैं| अगर हम तंगदिली को छोड़कर किसी भी महात्मा के अनुभव की खोज करें तो पता चलेगा कि हर एक महात्मा एक ही उपदेश देते हैं एक ही संदेश देते हैं|

              ||  राधा स्वामी ||

संत मार्ग सिद्धांत की जानकारी के लिए पढ़ें

राधास्वामी जी

आप सभी को दिल से राधास्वामी जी