संत-महात्मा एक ही बात पर ज्यादा जोर देते हैं, कि मनुष्य को भजन सिमरन पर ध्यान देना चाहिए| क्योंकि मनुष्य जन्म ही एक ऐसा जीवन है| जिसमे बैठकर हम भजन सुमिरन कर सकते हैं| जिसमें विवेक की शक्ति है|
किसी संत ने कहा है :-
हे इंसान! जब तक तू जीते जी नहीं मरता, तू असली फल कैसे पा सकता है? इसलिए मरने से पहले मर और इस शरीर का लाभ उठा ले, तु कई बार मरा पर पर्दों में ही ढका रहा, क्योंकि तुझे सही अर्थों में मरने की युक्ति प्राप्त नहीं हुई|
मृत्यु पर जीत प्राप्त की जा सकती है| संत महात्मा समझाते हैं कि शरीर की मृत्यु के बाद की जीवन का अनुभव प्राप्त करने की एक युक्ति है और वह युक्ति या विधि सीखी जा सकती है| संत-महात्मा हमें अपनी मर्जी से जब चाहे शरीर को खाली कर देने और जब चाहे शरीर में वापस आ जाने की युक्ति सिखाते हैं| हमें उनसे ज्ञान प्राप्त होता है| कि उस युक्ति पर अमल करने से और उस युक्ति के अनुसार जीवन को ढालने से हम शरीर और मन के पार की जगत की यात्रा कर सकते हैं|
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इस युक्ति को अपनाने से हमारी स्पष्ट सोचने की शक्ति बढ़ती है| हमें मानसिक शांति मिलती है और आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है| संत-महात्मा समझाते हैं कि उनके बताए गए अभ्यास में पूर्णता प्राप्त करने से हमारा जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा हो जाता है और हमें अमर आनंद की प्राप्ति हो जाती है|
इसलिए हमें भी चाहिए की हर वक्त मालिक की याद में बिताए और पूरा समय भजन सिमरन को दें! ताकि हमारा जन्म-मरण का चक्र खत्म हो और परमात्मा से मिलाप हो|
|| राधा स्वामी ||
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