सोमवार, 3 दिसंबर 2018

एक बार इसको पढ़ोगे तो आंखें खुल जायेंगी

इस दुनिया में जितने भी भी संत महात्मा आए हैं| उन सभी का यही कहना है कि की परमात्मा का ध्यान करो| भजन सुमिरन करो| वहां पर केवल आपकी भक्ति की कद्र की जाएगी, ना कि आपकी जाति और धर्म पूछा जाएगा| परमात्मा के दरबार में केवल भक्ति भाव ही देखा जायेगा|

परमात्मा की कोई जाति या धर्म नहीं होता

उस मालिक की कोई कौम नहीं है, उसका कोई मजहब या मुल्क नहीं है| न ही उस मालिक की कोई जाति या रंग-रूप है| अगर हम महात्माओं की वाणीयों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो पता चलेगा कि वे हमारे ख्याल को जाती-पाती, कौम, मजहब और मुल्क के भेद-भाव से ऊंचा उठाकर हमारे अंदर परमात्मा की भक्ति का शौक और प्यार पैदा करते हैं| वह हमें परमात्मा की भक्ति करना सिखाते हैं| हमारे अंदर परमात्मा के प्रति प्रेम भरते हैं।


जिस परमात्मा ने अपने हुकुम के द्वारा इस सृष्टि की रचना की है, अगर उसका कोई रंग-रूप और जाति नहीं है तो हमारी आत्मा की ---जो उस परमात्मा की अंश है, उस परमात्मा से ही निकली है और वापस जाकर उसमें ही समाना चाहती है--- कैसी कोई जाति हो सकती है? जब समुंद्र की कोई जाति नहीं है तो उसकी एक बूंद की क्या जाति हो सकती है| अगर सूरज की कोई कौम या मजहब नहीं है तो एक मामूली किरण की कौन-सी कौम, कौन सा मजहब हो सकता है? यह सब जाति-पाति के झगड़े हमारे अपने पैदा किए हुए हैं| परमात्मा ने तो सिर्फ इंसान पैदा किए हैं| हम अपने आप को जाती-पाती , कौम, मजहब और छोटे छोटे दायरों में बांट रहे हैं| और एक-दूसरे  के भेद-भाव में फंसे हुए हैं|


केवल भक्ति की कद्र
इंसान को केवल संतों की बताई हुई वाणी पर अमल करना चाहिए| इंसान को जब समय मिले, भजन सुमिरन पर जो देना चाहिए| क्योंकि मालिक के दरबार में केवल आपकी भक्ति और प्यार की कद्र की जाएगी| वहां पर केवल आपकी भक्ति भाव को देखा जाएगा| ना कि वहां पर आपकी किसी जाति या धर्म को पूछा जाएगा| इसलिए हमें भी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा भजन सुमिरन करें और इस मनुष्य जन्म का लाभ उठाएं|

                     || राधा स्वामी ||

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