धन-दौलत पापों के बिना इकट्ठे नहीं होती:- बाबाजी

संत महात्मा कहते हैं कि धन-दौलत पापों के बिना इकट्ठे नहीं होती और अतः समय साथ नहीं जाती। गुरु नानक साहिब फरमाते हैं कि लोग धन-दौलत इकट्ठा करने में खोए हुए हैं और इस बात पर विचार करने का यत्न नहीं करते कि वे पापों का ऐसा भारी बोझ इकट्ठा कर रहे हैं जो अनेक लोगों की रूहानी विनाश कारण बन चुका है और अब उनके विनाश का कारण बनेगा।



धन जो पाप के बिना इकट्ठा नहीं हो सकता, मृत्यु के बाद साथ नहीं जा सकता और प्रभु की दरगाह में दुर्दशा का कारण बनता हैं, वह हमारे लिए लाभदायक किस प्रकार हो सकता है?


गुरु अमरदास जी फरमाते हैं
कि राजा, शासकीय अधिकारी आदि धन के मोह के अधीन, परायी दौलत हथिया कर माया के विष का भंडार इकट्ठा कर लेते हैं। वास्तव में लोभ, लालच और माया उनको छल लेते हैं और अंत समय उन्हें यम के हाथों चोटें सहनी पड़ती है।




सच्चा गुरु कौन?
अगर कोई गुरु या पीर होकर शिष्यों से भीख मांगता फिरता है तो उसके पैरों पर कभी सिर नहीं झुकाना चाहिए। जो मेहनत करके अपनी रोजी कमाता हो और उसे हक-हलाल की कमाई में से साधसंगत की सेवा करता हो, वही परमार्थ की राह का सच्चा जानकार, सच्चा गुरु हो सकता है।




कबीर साहिब ने गुरु तथा शिष्य दोनों के लिए बहुत ऊंचा आदर्श स्थापित किया है। आप फरमाते हैं कि शिष्य को चाहिए कि अपना सब कुछ गुरु को अर्पण कर दे, अर्थात सब कुछ गुरु का समझ कर इस्तेमाल करें, परंतु गुरु को चाहिए कि शिष्य की सुंई को हाथ न लगाए, वहीं गुरु सच्चा गुरु हो सकता है।



                || राधास्वामी ||

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