बुधवार, 19 दिसंबर 2018

ये सबसे अच्छा आसन है, भजन सुमिरन के लिए। पढें

अभ्यास करते समय सुखद आसन में बैठकर रीढ़ की हड्डी और गर्दन को सीधा रखना जरूरी है। ठोड़ी अगर थोड़ी सी अंदर की ओर हो तो बेहतर है। सिर न अधिक नीचे की ओर झुका होना चाहिए और न बाहर की ओर, क्योंकि इन दोनों अवस्थाओं में नींद आने का डर होता है। बिल्कुल सही अवस्था में बैठना चाहिए। शरीर में कोई तनाव नहीं होना चाहिए और पूर्णतया आरामदायक आसन में बैठना चाहिए, ताकि भजन सुमिरन में ध्यान लगे।


बाबा जी फरमाते हैं :-
अभ्यास में शरीर और मन दोनों शामिल होते हैं। अगर अभ्यास में सहायक सुखद आसन नहीं अपनाएंगे तो अभ्यास में बाधा पड़ेगी। इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि सीधे और सावधान होकर बैठे और शरीर पूरी तरह अडोल रहे। इससे ने केवल अभ्यास में सहायता मिलती है, बल्कि इसका स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।




जिस प्रकार हिल रहे गिलास में पड़ा पानी स्थिर नहीं रह सकता, उसी प्रकार अगर शरीर बार-बार हिलता रहे तो मन भी शांत और स्थिर नहीं हो सकता। शरीर को अडोल रखने से मन को स्थिर रखने में सहायता मिलती है। इसलिए अभ्यास के लिए ऐसा आसन अपनाना चाहिए, जिसमें बिना कष्ट के आराम के साथ बिना हिले-डुले बैठ सकें। जिससे हमारा ध्यान बने, ठीक से सुमिरन हो सकें



एकाग्रता :-
भजन-सुमिरन द्वारा हम अपने ध्यान को यहां आंखों के बीच में ठहराने की कोशिश करते हैं, ताकि यह नीचे इन्द्रियों की ओर न जाये। मन को आंखों के बीच में स्थिर करना तथा उसे नीचे न गिरने देना ही एकाग्रता है। इसलिए हमें भी चाहिए कि एक अडोल आसन लगाकर मन को स्थिर करें और अपने भजन सुमिरन पर जोर दें।


                    || राधास्वामी ||

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राधास्वामी जी

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