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रविवार, 9 दिसंबर 2018

मुक्ति के लिए भजन सुमिरन ही दवाई। पढ़ें

सूरमा वही है, मन और इंद्रियां जिसके वश में है। क्योंकि अंदर तरक्की उसी मात्रा में होगी जिस मात्रा में यह दोनों वश में होंगे। सुमिरन बाहर भटकते मन को अंतर में लाता है और शब्द से ऊपर की ओर खींचता है। हमारे अंदर अखूट भंडार है। वह परमात्मा खुद भी हमारे अंदर है। जो अंदर जाता है, वही इसका अनुभव करता है; और लोगों को तो इसका अनुमान तक नहीं है।
  --------महाराज सावन सिंह-------


सोच विचार में पड़े से हम अपना ध्यान तीसरे तिल पर एकाग्र नहीं कर पाते और शब्द से जुड़ नहीं पाते। इस रोग से हमारे अहं का पोषण होता है और वह और अधिक मजबूत होता जाता है। अहंकार या होमैं हमारी आत्मा को कैंसर के रूप के समान ढक लिया है और यह हमारे जीवन के हर पहलू को नष्ट कर रहा है। हम आत्मिक तौर पर बीमार हैं और भजन सुमिरन ही एकमात्र दवा है। जो हमें निरोग कर सकेगी। अगर हम दवा का प्रयोग ना करें तो हमारा स्वास्थ्य कैसे सुधर सकता है?


हम संत मार्ग के बारे में बातें करते हैं, पुस्तके पढ़ते हैं और चर्चा करते हैं। इस विषय में बहुत कुछ कहा जा चुका है, बहुत कुछ लिखा जा चुका है। चाहे तो हम शेष सारा जीवन बातें कर सकते हैं, पुस्तके पढ़ सकते हैं; पर बातें निरर्थक है और ज्यादा पुस्तकें ही हमें संतो के अनुभव का ज्ञान नहीं करवा सकती। जब हमें नामदान मिल गया है, तो हमें अधिक पुस्तकों की, अधिक चर्चा करने की, रिकॉर्ड की हुई टेपो आदि की या फिर सतगुरु के देह स्वरूप के पीछे दौड़ने की कोई आवश्यकता नहीं रहती।




हमें और विचारों या संकल्पों की आवश्यकता ही नहीं है। जो चीज हमें चाहिए, वह है अनुभव --कम जानकारी, अधिक बदलाव। स्वयं में यह बदलाव या तब्दीली लाने के लिए जिस एकमात्र चीज की चिंता करने की जरूरत है, वह है हमारी दवा-- दिन भर अधिक से अधिक भजन सुमिरन करना और भजन में बैठना। अगर हम पूरी इमानदारी के साथ शब्द-मार्गी सतगुरु द्वारा बताई गई विधि के अनुसार अभ्यास करें तो हम बेहतर इंसान बन जायेंगे, हमें अधिक अविनाशी आत्मा का ज्ञान हो जाएगा और परमात्मा को पा लेंगे।




समय भजन सुमिरन को दे.
इसलिए हमें भी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा समय भजन सुमिरन को दे और हक हलाल की कमाई पर अपना गुजारा करें। ताकि भजन सुमिरन ठीक से बन सकें। मन शांत रहें।


                  || राधा स्वामी ||

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