Radhasoamisantmarg

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

विकारों को उलटाना ताकि भजन-सुमिरन बने

निर्मल सोच भजन सुमिरन में विघ्न डालने वाले भावों और विचारों को नई दिशा देने में सहायता करती है। पर हैरानी की बात है कि मन इतना अडियल है कि रूहानी अभ्यास के बारे में सोचते ही यह सभी कुछ आगे की बजाय पीछे कर देता है। हम काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार की बजाय मन में इनके विरोधी गुण पैदा करने की बात करते हैं। ताकि हमें भजन सुमिरन और रूहानी उन्नति में सहायता मिले।


क्या हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं। आमतौर पर होता है कि मन बीच में आ जाता है और सब कुछ उलट-पुलट कर देता है।

उदाहरण
के तौर पर काम, इंद्रियों को भोगों की ओर खींचता है। इसका विरोधी गुण, शील या संयम है। पर क्या अपने आप को रूहानी मार्ग का यात्री कहने के बावजूद, हम शील या संयम धारण करते हैं? क्या यह एक आश्चर्य नहीं है कि हम संयम का केवल भजन सुमिरन के अभ्यास में ही प्रयोग करते हैं? हम यहां तक कह जाते हैं कि अधिक भजन सुमिरन खतरनाक या हानिकारक होता है। इसके विपरीत हम काम-वासना में बह जाने की अपनी कमजोरी के पक्ष में दलीलें देते हैं। हम यहां तक कह देते हैं कि मैंने तो अनुभव प्राप्त करने के लिए भोग, भोगा होगा था। हम दलित देते हैं, " मेरे लिए यह अनुभव करना जरूरी था। मुझे इस चीज का ज्ञान होना चाहिए। मुझे इस अनुभव में से गुजरना ही चाहिए था। परंतु हम यह नहीं सोचते यह हमारी रूहानी यात्रा में कष्ट दाई है।"

रूहानी मार्ग
का साधक होने के नाते हमें इसके बिल्कुल उलट सोचना और करना चाहिए। हमारे अंदर कामना अधिक से अधिक भजन सुमिरन की होनी चाहिए। अगर हमारे अंदर रूहानियत की गहरी कामना है तो हमारे अंदर भजन सुमिरन करने की गहरी कामना या तडप भी होनी चाहिए। हमारे मन में भजन सुमिरन इतनी प्रबल कामना होनी चाहिए कि हम उस अवस्था में पहुंच जायें, जहां अपना अस्तित्व ही इसमें खो दें।

इसलिए हमें भी चाहिए
कि अपना सब कुछ काम करते हुए, इस दुनिया के रीती-रिवाज सभी धर्मों का आदर सम्मान करते हुए। हमें अपने रूहानी सफर को तय करना है। और ज्यादा से ज्यादा भजन सुमिरन को समय देना है। ताकि हमें एक मालिक ने जो काम सौंपा था। हम उसको पूरा करके अपने निजधाम, अपने निजी घर, परमात्मा के पास पहुंच जाए। ताकि हमारा आवागमन के चक्कर से छुटकारा हो जाए। इस चौरासी के जेल खाने से छुटकारा हो हो जाए। इसमें कोई ज्यादा सोचने की बात नहीं है। कि हमें क्या करना है। आपको केवल सिमरन करना है। उस परमात्मा का ध्यान करना है। जितना समय हो उसके परमात्मा की शरण में, उसके चरणों में ध्यान लगाना चाहिए। आइए हम भी यह सोच पैदा करें कि हमारा कोई भी ऐसा पल, कोई भी ऐसे समय खाली ना जाए, जिस वक्त हम उस परमात्मा को याद ना करे।
                  
                    || राधास्वामी ||

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