संत महात्मा समझाते हैं चाहे जीतने वेद शास्त्र पढ़ लें, कितने भी सत्संग सुन लें, किसी भी संत-महात्मा के पास चले जाएं। लेकिन उसका जब तक कोई फायदा नहीं होता। जब तक हम गुरु से रूहानियत के बारे में कोई विधि ना जान लें।
तुसली साहब की वाणी
चार अठारह नौ पढ़े, षट पढ़ी खोया मूल।
सूरत सबद चीन्हे बिना, ज्यों पंछी चंडूल।।
सूरत सबद चीन्हे बिना, ज्यों पंछी चंडूल।।
अर्थात - चाहे कोई चारों वेद, अठारह पुराण, नौ व्याकरण और छ: शास्त्र भी पढ़ लें, लेकिन अगर उसने सुरत-शब्द का ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो उसकी यह हालत चंडोल पक्षी जैसी है, जिसके लिए कहा जाता है कि जैसी बोली वह सुनता है उसी की वह नकल कर लेता है। इसलिए हमें सुरत-शब्द का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है।
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पूर्ण गुरु से शब्द की प्राप्ति
संत सतगुरु समझाते हैं कि हमें पूर्ण गुरु से ही रूहानियत के रास्ते की जानकारी मिलती है। उनसे ही हमें पांच शब्दों का भेद मिलता है। और इन पांच शब्दों के द्वारा हमें अपने सच्चे घर ले जाता है। स्वामी जी महाराज भी अपनी वाणी में फरमाते हैं कि शब्द-स्वरूपी, शब्द-अभ्यासी गुरु की ही तलाश करनी चाहिए। ताकि अपना मनुष्य जन्म में आने का मकसद पूरा हो जाये।
शब्द की कमाई
हमें चाहिए की पूर्ण सतगुरु से प्राप्त शब्द की कमाई हर रोज करनी चाहिए। कभी भी उस शब्द को नहीं भूलना चाहिए। हमें उसे इस तरीके से अपने अभ्यास में रखना है कि वह पल भर के लिए भी हमसे ना अलग ना हो। हमारा पल-पल भजन-सुमिरन चलता रहे, ताकि कोई भी स्वांस हमारा बेकार ना जाए और हम केवल उस परमपिता परमात्मा की भक्ति करते रहे।
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संत महात्मा समझाते हैं कि जब तक हम उस शब्द की खोज नहीं करते, हमारे अंदर से अज्ञानता का अंधेरा कभी दूर हो ही नहीं सकता, ना हम परमात्मा से कभी मिल सकते और न ही हम कभी देह के बंधनों से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं। संत फरमाते हैं कि हमें केवल शब्द ही इस भवसागर से पार कर सकता है। हमें भी भजन-सुमिरन पर जोर देना और इस भवसागर से पार उतर जाना है।
|| राधास्वामी ||
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