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सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

क्या सतगुरु परमात्मा हैं? ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें

Radha Soami-संत-महात्माओं ने अपनी वाणी में कई जगह फ़रमाया है कि सतगुरु परमात्मा का रूप है और वे मनुष्य जन्म में आकर हमे रूहानियत का पढ़ पढ़ते हैं। हमे एक सच्ची राह पर चलने का पाठ पढ़ाते हैं ताकि हम इस मनुष्य जन्म का लाभ उठा कर परमात्मा में समा जायें।



विश्वास की अहम कसौटी भजन-सुमिरन करना :
क्या सतगुरु परमात्मा है या नहीं ? अगर हमें विश्वास है कि सतगुरु परमात्मा है तो इस विश्वास की सबसे अहम कसौटी यह है कि क्या हम उनके हुक्म के मुताबिक भजन-सुमिरन करते हैं? जिन्हें हम सतगुरु मानते हैं, अगर हम उनके लिए एक और सिर्फ एक हुकुम का पालन नहीं करते तो हम अपने विश्वास के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, हम केवल दिखावा कर रहे हैं कि हमें विश्वास है, क्योंकि सतगुरु के हुक्म का पालन न करने की गुस्ताखी कौन करेगा?


सत्य को जानने की इच्छा जन्म से ही :
हम सबके अन्दर सत्य को जानने की इच्छा जन्म से ही है। इससे हमें सीखना नहीं पड़ता, इस जिज्ञासा को न तो हम खुद पैदा करते हैं और ना ही कहीं बाहर से अपनाते हैं। यह जांच-परख और सवाल करने वाले हमारे मन की सहज प्रवृत्ति है। मन में कुदरती तौर पर सवाल उठते हैं- "इस सृष्टि को बनाने वाला कौन है?" "उसने इस सृष्टि की रचना क्यों की है?" "मैं कौन हूं?" "मैं यहां किसलिए आया हूँ?" वगैरह-वगैरह।


इन सवालों के ज़वाब जानना हर कोई चाहता है परंतु कितने ही सर पटक लें, इनका ज़वाब नही मिलेगा। हम बुद्धि द्वारा चाहे कितना ही सोच-विचार कर लें, हमें कुछ भी समझ नहीं आएगा क्योंकि इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं है। सृष्टि के बारे में की गए इन सवालों का जवाब बड़े से बड़ा दार्शनिक भी नहीं दे सकता। हाँ, थोड़ी बहुत जानकारी मिल सकती है लेकिन यह तो पक्की बात है कि किसी के पास भी ठोस और सही जवाब नहीं है।

भजन-सिमरन से ही हर सवाल का जवाब:

संत हमेशा भजन-सिमरन पर जोर देते रहते हैं। संत-महात्मा बताते हैं कि हमें भजन-सुमिरन करते हुए जीते जी मरने की कला सीखनी है। जीते जी मरने से मतलब है कि भजन-सुमिरन में इतना खो जाना कि हमें अपने शरीर तक का होश न रहे। जब हम इस स्थिति में आ जाएंगे तो हमें सृष्टि के बारे में, परमात्मा के बारे में, हर विषय के बारे में जानकारी मिल जाएगी। इसलिए संत-महात्मा समझाते हैं कि ज्यादा से ज्यादा भजन-सुमिरन जोर दो।

                     राधास्वामी

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