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सेवा सिमरन औऱ सत्संग से सुख नही तो किसकी कमी: बाबाजी ने ये बताया

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Radha Soami - बाबाजी  फरमाते हैं नाम बड़ी ऊँची दौलत है। बड़े भाग्य से मिलता है। जो भाग्य से मिला है तो इसकी कदर करो। दबा कर कमाई करो। हमारा एक एक स्वांस करोड़ की कीमत का है। इसको ऐसे ही न खोवो। सतगुरु जिस दिन नाम देते उस दिन से शिष्य के अंदर बैठ जाते हैं, यह बात शिष्य नहीं समझता। यदि शिषय कमाई करे तो देख ले। बुलेशाह ने भी कहा है-  असाँ ते वख नहीं, देखन वाली अख नहीं, बिना शौह थी, दूजा कख नहीं। गुरु  नानक  देव  जी दुनिया  के  जीव  बहुत  बुरी  तरह  काल  के  जाल  में  फँसे  हुए  हैँ ।  जो  कर्म  पहले  किये  हैं। उनका  नतीजा  अब  रो-पीटकर  भोग  रहे  हैं और उसी  तरह  बुरे-खोटे  पाप  और  कर्म  करते  जा  रहे  हैं ।  भूले  हुए  हैं  कि  इनका  नतीजा  भोगने  के  लिये  फिर  इसी  चौरासी  के  चक्कर  में  आना  पड़ेगा ।...

भजन-सिमरन के द्वारा ही अंदरुनी दर्शन संम्भव है: बाबाजी

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Radha Soami -संत अपने अनुभव के अनुसार हमें रूहानियत के बारे में समझाते हैं। उनके हर सत्संग में केवल और केवल उस परमपिता परमात्मा की दर्शनों की बारे में  समझाते हैं। उनके दर्शन कैसे किए जाएं, उनकी दर्शन कैसे होते हैं, यही सब बातें हमें बार-बार संत-महात्मा उदाहरण दे देकर कर समझाते हैं। दर्शन कैसे होते हैं? कितने प्रकार की होते हैं? यही सब हम आज जानेंगे। रूहानियत में इन सब बातों का ध्यान रखना जरूरी है: बाबाजी          दर्शन तीव्र और गहरे प्रेम का नतीजा है। जब हम बिना कोई कोशिश की सतगुरु की ओर टकटकी लगाकर देखने के लिए मजबूर हो जाते हैं; जब हम उनके आभा मंडल को, उनके नूर को देखकर मुग्ध हो जाते हैं, दंग रह जाते हैं। जब हम उनकी और इस तरह खींचे चले जाते हैं जैसे कोई सुई चुंबक की ओर, जब हम उनकी मौजूदगी में इतने लीन हो जाते हैं, खो जाते हैं मानो दुनिया ठहर गई हो और किसी दूसरी चीज की अहमियत नहीं रहती; जब कशिश इतनी जबरदस्त होती है कि उस पर हमारा वश नहीं रहता और हम अपने आसपास की हर चीज से बेखबर हो जाते हैं- यह भी दर्शन हैं। ...

सत्संगों में से कुछ महत्वपूर्ण चुने हुये प्रेरणादायी वचन

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Radha Soami- संत हमेशा अपने सत्संग में केवल उस परमपिता परमात्मा की प्राप्ति का रास्ता बताते हैं। वहां पर केवल नाम की युक्ति के बारे में समझाते हैं। बताते हैं कैसे?  उस परमपिता परमात्मा को पाए जा सकता है। आज हमने कुछ महत्वपूर्ण शब्द चुने हैं जो रूहानियत के बारे में हमें बहुत सी जानकारी देते हैं। संत कहते हैं की सभी मनुष्य नामरूपी अनमोल रतन प्राप्त करने के लिए इस संसार में आते हैं। परंतु कोई विरले गुरमुख ही इस काम में सफल हो पाते हैं। जो नाम प्राप्त नहीं करते, उन्हें दोबारा जन्म लेना पड़ता है और माता के गर्भ में नौ माह तक उल्टे लटक कर घोर प्रायश्चित करना पड़ता है। उस समय आत्मा का ध्यान निरंतर तीसरे दिन में लगा रहता है और यही ध्यान उसकी रक्षा करता है। वह इस नरक से छुटकारा पाने के लिए प्रभु के चरणों में लगातार प्रार्थना करता रहता है कि अब जन्म मिलने पर वह प्रभु को एकदम याद रखेगा। राधा स्वामी संत मार्ग जन्म लेने के बाद परमात्मा को भूल जाता है मनुष्य जब जीव का जन्म होता है तो सारे परिवार में प्रसन्नता की लहर दौड़ जाती है और सब उससे प्यार करते हैं। उसे चारों और सुंदर दृश्य...

रूहानियत में सतगुरु के बिना कोई सहयोगी नही: बाबाजी

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Radha soami- बाबाजी अपने सत्संग में बार-बार फ़रमाते रहते है कि भजन सिमरन बहुत जरूरी है। बीना इसके कुछ भी नही है। और यही आखिरी मौका है। इसके बाद आपको ये मनुष्य जन्म नही मिलेगा। भले ही हजारों सूर्यों का प्रकाश हो जाए, लेकिन रूहानी मार्ग में सतगुरु के बिना हम अज्ञानता और अंधकार में है। बिना सतगुरु के मुक्ति कभी नहीं मिल सकती। ये भी पढ़ें : मनुष्य जन्म को सार्थक करना है? तो रूहानियत में इन बातों का रखें ख्याल सतगुरु का कार्य सतगुरु का कार्य है हमें उपदेश की याद दिलाना और भजन-सिमरन द्वारा हमारा ध्यान और परम ज्ञान की ओर, उसकी पहचान की ओर ले जाना जो रूहानियत का मूल स्त्रोत है, क्योंकि भजन-सिमरन ही हमारे आंतरिक अभ्यास की बुनियाद है। नामदान से हर मुक़ाम हासिल सतगुरु हमें वह युक्ति बताते हैं जिससे शिष्य की आत्मा एकाग्र होकर अंतर में जुड़ जाती है। वह हमें सिखाते हैं कि कैसे मन को एकाग्र करके सतगुरु के स्वरुप पर ध्यान टिकना आना है। और कैसे उस परमपिता परमात्मा को पाना है। यही सतगुरु का सीधा साधा उपदेश है।

मनुष्य जन्म को सार्थक करना है? तो रूहानियत की इन बातों पर करें अमल

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Radha Soami- हम अपने इस मनुष्य जन्म को सार्थक कर सकते हैं। हम उस परमपिता परमात्मा को पा सकते हैं। बस  हमें कुछ रूहानियत की बातों पर अमल करना होता है। अगर हम उन रूहानियत के नियमों के अनुसार चलेंगे तो हम परमपिता परमात्मा को पा लेंगे और इस चौरासी के जेलखाने से आजाद हो सकते हैं। क्या है रूहानियत के नियम जानें? 1. सबसे पहले अपने व्यवहार में सादगी बनायें रखें। 2. हर किसी व्यक्ति का सम्मान करें और सत्संग से जुड़े रहें। 3. कभी किसी का दिल ना दुखायें। प्यार और प्रेम बनाए रखें। 4. मुसीबत में एक-दूसरे व्यक्ति की मदद करें। 5. पूर्ण सतगुरु की खोज करें, उसके हुकुम में चलें Also read :   रूहानियत में इन बातों पर ध्यान रखना जरूरी है:  बाबाजी 6. हक हलाल की कमाई करें, हक हलाल की कमाई पर गुजारा करें। 7. सतगुरु के बताए गए उपदेशों पर चलें। गलत संगति में ना बैठें। 8. किसी प्रकार का नशा ना करें। पराई स्त्री को बहन, माता, पुत्री के समान समझें। 9. किसी जीव की हत्या ना करें और उस परमपिता परमात्मा का ध्यान करें। 10. सतगुरु द्वारा प्राप्त नामदान से हम उस परमपिता परमात्मा को...

रूहानियत में इन बातों पर ध्यान रखना बहुत जरूरी है : बाबाजी

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Radha Soami- संतों की शरण किसी क़िस्मत वाले को मिलती है। और जो इंसान संतों की शरण में चला जाता है। समझो उसका परमात्मा से मिलने का रास्ता साफ हो गया। वो इंसान अपने संत-सतगुरु से नाम की युक्ति प्राप्त करके, रूहानियत की राह पर चल कर अपने जीवन को सार्थक कर सकता है। हक हलाल की कमाई पर गुजारा  संत हमेशा रूहानियत के रास्ते पर चलने की नेक सीख बतलाते हैं। हमें सत्य पर चलना और हक हलाल की कमाई पर गुजारा करने की प्रेरणा देते हैं। क्योंकि हक हलाल की कमाई से हमारा मन ज्यादा विचलित नहीं होता, वह सही राह पर रहता है। इसलिए हमें हक हलाल की कमाई पर गुजारा करना चाहिये। Read also : मन में नम्रता, सेवा भाव से भजन सुमिरन में आसानी होती हैं एक रूहानियत की खास कला हमें अपना व्यवहार बिल्कुल शांत स्वभाव में रखना चाहिये। जितना हम शांत स्वभाव में रहेंगे, उतना ही हमारा मन एकाग्र होगा। और आसपास में अपना वातावरण भी खुशनुमा रहेगा। हर व्यक्ति के साथ बड़ी नम्रता से पेश आना चाहिए। यह एक रूहानियत की खास कला है, जिसके जरिए हम मन को एकाग्र करने में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। Read...

सतगुरु परमात्मा और जीवों के बीच की कड़ी: बाबाजी

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Radha Soami- सतगुरु एक रूहानी मार्गदर्शक यानी आदर्श हैं। उनका कार्य परमार्थ की खोजियों को सांसारिक बंधनों से छुड़ाकर रूहानियत के परम लक्ष्य तक ले जाना । सतगुरु सर्वोच्च है, सर्वव्यापक है और सब कुछ उन में समाया हुआ है। वहीं केंद्र बिंदु है, मध्य बिंदु और आधार बिंदु है। सतगुरु सृष्टि का रहस्य की कुंजी सतगुरु सृष्टि का रहस्य जानने की कुंजी है। सारा ब्रह्मांड उन्हीं में समाया हुआ है। जो सतगुरु के शब्द स्वरूप से जुड़ गए हैं। जिन्होंने उनका नूरी स्वरूप देखा है, जिन्हें आंतरिक अनुभव हो चुका है, वे जानते हैं कि सतगुरु और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं है। उनके लिए सतगुरु और परमात्मा एक ही है, अलग नहीं है।वह परमात्मा का हिस्सा है। यह भी पढ़े : मन में नम्रता, सेवा भाव से भजन सुमिरन में आसानी होती हैं दोनों एक ही शब्द, एक ही तेज़, एक ही शक्ति और एक ही चेतना है, ठीक उसी तरह जैसे सूरज और उसकी किरण। हमें निजी अनुभव से यह एहसास हो जाता है कि हमारे लिए पहली सच्चाई सतगुरु है, उसके बाद परमात्मा। यह भी पढें : क्या सतगुरु परमात्मा हैं? ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें परमात्मा हम...

क्या सतगुरु परमात्मा हैं? ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें

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Radha Soami -संत-महात्माओं ने अपनी वाणी में कई जगह फ़रमाया है कि सतगुरु परमात्मा का रूप है और वे मनुष्य जन्म में आकर हमे रूहानियत का पढ़ पढ़ते हैं। हमे एक सच्ची राह पर चलने का पाठ पढ़ाते हैं ताकि हम इस मनुष्य जन्म का लाभ उठा कर परमात्मा में समा जायें। विश्वास की अहम कसौटी भजन-सुमिरन करना : क्या सतगुरु परमात्मा है या नहीं ? अगर हमें विश्वास है कि सतगुरु परमात्मा है तो इस विश्वास की सबसे अहम कसौटी यह है कि क्या हम उनके हुक्म के मुताबिक भजन-सुमिरन करते हैं? जिन्हें हम सतगुरु मानते हैं, अगर हम उनके लिए एक और सिर्फ एक हुकुम का पालन नहीं करते तो हम अपने विश्वास के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, हम केवल दिखावा कर रहे हैं कि हमें विश्वास है, क्योंकि सतगुरु के हुक्म का पालन न करने की गुस्ताखी कौन करेगा? बाबाजी के कथन : - शब्द के पांच नाम जिनसे होता है परमात्मा से मिलन सत्य को जानने की इच्छा जन्म से ही : हम सबके अन्दर सत्य को जानने की इच्छा जन्म से ही है। इससे हमें सीखना नहीं पड़ता, इस जिज्ञासा को न तो हम खुद पैदा करते हैं और ना ही कहीं बाहर से अपनाते हैं। यह जांच-परख और सवाल करने...

शब्द के पांच नाम जिनसे होता है परमात्मा से मिलन

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संत महात्मा समझाते हैं चाहे जीतने वेद शास्त्र पढ़ लें, कितने भी सत्संग सुन लें,  किसी भी संत-महात्मा के पास चले जाएं। लेकिन उसका जब तक कोई फायदा नहीं होता। जब तक हम गुरु से रूहानियत के बारे में कोई विधि ना जान लें। तुसली साहब की वाणी चार अठारह नौ पढ़े, षट पढ़ी खोया मूल। सूरत सबद चीन्हे बिना, ज्यों पंछी चंडूल।। अर्थात - चाहे कोई चारों वेद, अठारह पुराण, नौ व्याकरण और छ: शास्त्र भी पढ़ लें, लेकिन अगर उसने सुरत-शब्द का ज्ञान प्राप्त नहीं किया तो उसकी यह हालत चंडोल पक्षी जैसी है, जिसके लिए कहा जाता है कि जैसी बोली वह सुनता है उसी की वह नकल कर लेता है। इसलिए हमें सुरत-शब्द का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है। गुरु जी के विचार : सुमिरन करते समय सतगुरु का ध्यान लाभदायक : बाबाजी पूर्ण गुरु से शब्द की प्राप्ति संत सतगुरु समझाते हैं कि हमें पूर्ण गुरु से ही रूहानियत के रास्ते की जानकारी मिलती है।  उनसे ही हमें पांच शब्दों का भेद मिलता है। और इन पांच शब्दों के द्वारा हमें अपने सच्चे घर ले जाता है। स्वामी जी महाराज भी अपनी वाणी में फरमाते हैं कि शब्द-स्वरूपी, शब्द-अभ्य...

सुमिरन करते समय सतगुरु का ध्यान लाभदायक : बाबाजी

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सुमिरन मन द्वारा करना चाहिए और किसी दूसरे व्यक्ति को सुनायी नही देना चाहिए। इस तरह सुमिरन करना आदत डालनी वाली बात ही है। लगातार चलने रहने वाला सुमिरन प्रेम और श्रद्धा भरे जीवन में प्रवेश का गुप्त द्वार है। क़ुरान मजीद चाहे तुम बात उच्च स्वर में कहो (या धीमे स्वर में ), वह तो छिपी हुई बातों और अत्यन्त निहित बात को भी जानता है। अल्लाह ! उसके सिवा कोई 'इलाह' ( पूज्य ) नहीं। उसके सभी नाम शुभ हैं। नाम या परमात्मा की बराबरी नही परमात्मा और उसका नाम संसार की मीठी से मीठी और प्यारी से प्यारी चीजों से भी कहीं अधिक मीठा और प्यारा है ।  संसार की कोई भी वस्तु परमात्मा और उसके नाम की बराबरी नहीं कर सकता । बाबाजी के कथन : बीना नाम ना उतरे पार, अब है मौका करले विचार सतगुरु अंग-संग महसूस जब सुमिरन लगातार चलता रहता है तो हमें अपने अंदर दिव्य-चेतना का अस्तित्व महसूस होने लगता है । यह अपने आप में ही हमारा भजन-सुमिरन बन जाता है। सतगुरु के दिए नाम का प्रेमपूर्वक सुमिरन करने से सतगुरु अंग-संग महसूस होते हैं। भजन-सुमिरन सहज भाव से करना चाहिए। सुमिरन करने की गति तेज नहीं हो...

बीना नाम ना उतरे पार, अब है मौका करले विचार

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Radha Soami-संत हमेशा सच पर विचार रखते हैं। संत अपने हर सत्संग में सच के बारे में बतलाते हैं। उस सच के बारे में बतलाते हैं जो हम खुली आंखों से नहीं देख सकते। क्योंकि खुली आंखों से हम केवल संसार को और संसार के अंदर जो भी पदार्थ हैं, हम केवल उन्हीं को देख सकते हैं। सच के लिए वक्त के सतगुरु की शरण सच को जानने के लिए, सच को देखने के लिए हमें वक्त के संत सतगुरु की आवश्यकता पड़ती है। हमें वक्त के सतगुरु की शरण चाहिए। वक्त की संत सतगुरु से शब्द, नामदान की प्राप्ति करके, हमें उसका सुमिरन करना है। उस परमपिता परमात्मा की भक्ति करनी है। हमें भजन-सिमरन करना है ताकि सच से सामना हो सके। बाबाजी के विचार : प्रयास से ही प्रगति सम्भव है, हार ना मानें भजन सिमरन ही एक रास्ता संत महात्माओं ने अपने सत्संगों में, अपने किताबों में अपने अनुभव हमें समझाते हैं। संत ग्रंथों के जरिए हमें फरमाते हैं की परमात्मा से मिला करना या परमात्मा को पाना है तो केवल भजन-सुमिरन ही एक रास्ता है। इसके अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं है। अगर भजन-सुमिरन करेंगे तो हम उस परमपिता परमात्मा से जा मिलेंगे। अ...

प्रयास से ही प्रगति सम्भव है, हार ना मानें ।

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महाराज सावन सिंह जी फ़रमाते है कि यह हरएक सत्संगी का धर्म है कि वह अपने मन को स्थिर करके तीसरे तिल में पहुँचे। गुरु का कर्तव्य सत्संगियों को इस मार्ग में मदद और रहनुमाई देना है। मन तथा इंद्रियों को क़ाबू करना और दसवीं गली में प्रवेश करना शिष्य की कोशिश पर निर्भर करता है। इस काम को पूरा करने में ख़ास बात अभ्यासी की कोशिश है। महाराज सावन सिंह जी  जिस पल हमें नाम दान की बख्शीश होती है हम पर भजन सुमिरन के लिए आवश्यक दया मेहर भी कर दी जाती है उसके बाद सब कुछ हमारी कोशिश पर निर्भर करता है कि हम उस दे मेहर का कितना फायदा उठा सकते है राधास्वामी सत्संग : सच को जानो, वही सच आपको परमात्मा से मिला सकता है: बाबाजी जैसी कि बड़े महाराज जी ने ऊपर दिए उद्धरण में फरमाया है, हमें अपने प्रयास द्वारा मन को स्थिर कर के तीसरे तिल पर पहुंचाना है। यह काम हमारे लिए सतगुरु नहीं करेंगे। यह हमारा काम है। हमें हर रोज भजन-सिमरन करना है। हम अंदर तभी भी जा पाएंगे, जब हम भजन-सुमिरन के लिए बैठेंगे और अपनी तवज्जुह को तीसरे दिन पर एकाग्र करेंगे। यह काम केवल हम ही कर सकते हैं। राधास्वामी सत्संग : आ...

सच को जानो, वही सच आपको परमात्मा से मिला सकता है: बाबाजी

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संत समझाते हैं कि इस दुनिया में जो कुछ भी हम अपनी आंखों से देख रहे हैं, जो कुछ भी इस दुनिया में हमें नजर आ रहा है। वह सब नाशवान है। एक दिन उनको नष्ट हो जाना है। मिट्टी में मिल जाना है। सच से करो प्यार संत समझाते हैं केवल सच से प्यार करो, सच की हकीकत जानो। क्योंकि सच ही है जो हमें उस परमात्मा से मिला सकता है। क्योंकि जो पदार्थ हम अपनी आँखों देख रहे हैं । वह सब बेकार की चीजें हैं। वह सब कूड़ा है। राधास्वामी :- आओ सत्संग की महिमा जानें और इससे फायदा उठायें सच्चे गुरु की संगत हमें सच्चे गुरु की संगत करनी है। सच्चे गुरु की सोहबत बात करनी है। सच्चे गुरु से युक्ति प्राप्त करके उस परमपिता परमात्मा की भक्ति करनी है। सुमिरन में ध्यान लगाना है। ज्यादा से ज्यादा समय हमें भजन सुमिरन में देना है। क्योंकि वही एक सच है। वही एक सच है, वही एक रास्ता है, जो हमें उस परमपिता परमात्मा से मिला सकता है। इसके अलावा कोई भी ऐसी युक्ति या कोई चीज नहीं है, जो इस संसार से हमें निकाल सके। भजन- सुमिरन एक रास्ता क्योंकि और जो कुछ भी हम देख रहे हैं। वह सब हमें वापस ले आती है। भजन- सुमिरन एक...

आओ सत्संग की महिमा जानें और इससे फायदा उठायें

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संत समझाते हैं कि संतो का साथ यानी सत्संग प्राप्त करना बहुत ही बड़े सौभाग्य की बात है। क्योंकि सत्संग हर किसी के भाग्य में नहीं होता। सत्संग सतगुरु ( परमात्मा ) की दया मेहर से ही प्राप्त होता है। सत्संग उन्हीं व्यक्ति विशेष को प्राप्त होता है, जिस व्यक्ति पर उस परमपिता परमात्मा की मेहर होती है। बिना उसकी मर्जी से हम कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। सत्संग की महिमा संतों का सत्संग सुनकर हम अपने जीवन में काफी कुछ बदलाव ला सकते हैं। बहुत कुछ जीवन में प्राप्त कर सकते हैं। सत्संग एक ऐसी रूहानियत शक्ति है, जिसके जरिए हम उस परमात्मा रूपी मंजिल की तरफ जा सकते हैं। बिना सत्संग के हम उस तरफ अपने ध्यान को नहीं लगा सकते और सत्संग हमें तब प्राप्त होता है, जब हम किसी सतगुरु की शरण में जाते हैं , उसकी दया मेहर हमें होती है तो हमें सत्संग प्राप्त होता है। बाबाजी के विचार :- आंतरिक मार्ग की खोज, यानि निजघर का दरवाजा संतो का अनुभव संतों ने अपने अनुभव में फरमाया है की हमने जो कुछ भी हासिल किया है। हमने जो कुछ भी इस संसार में देखा है, हम उन सबको सत्संग के जरिए आपको फरमा रहे हैं। सत्संग ...

आंतरिक मार्ग की खोज, यानि निजघर का दरवाजा

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संत-महात्मा आपने हर सत्संगों में फ़रमाते है कि हमे परमात्मा से मिलना है तो सच्चे आन्तरिक मार्ग की खोज करनी पड़ेगी। जो बहुत जरूरी है। अगर हमें अपने घर के अंदर जाना है तो सबसे पहले घर के दरवाजे की तलाश करनी पड़ती है। निजघर का वह दरवाजा आँखों के पीछे तीसरी आँख, एक आँख या तीसरा तिल है। भजन और सुमिरन के द्वारा उसी को खोलने के लिये हम उसको खटखटाते हैं यानी बार -बार सिमरन और ध्यान के द्वारा अपने फैले हुए ख़याल को आँखों के पीछे इकट्ठा करते हैं। जब बार-बार खटखटाने से यानि सिमरन और ध्यान से हमारा ख़याल इकट्ठा हो जाता है, तब उस घर का दरवाजा खुल जाता है।फिर हमें घर जाने का रास्ता मिलता है। बाबाजी की वाणी :- संतों की वाणी - अमृतवाणी कर देती उद्धार : बाबाजी फिर जब हम अपने ख़याल को वहाँ जाकर शब्द के साथ जोड़ते हैं, तो शब्द ला मार्ग खुल जाता है। उसके द्वारा हम वापस जाकर परमात्मा से मिलाप कर सकते हैं। बस थोड़ी मेहनत करनी है जो हमारे लिए बहुत जरूरी है। तुलसी साहिब फ़रमाते हैं:- कुदरती काबे की तू महराब में सुन ग़ौर से । आ रही धुर से सदा तेरे बुलाने के लिये।। मुसलमान लोग हज यानि काबे की...

संतों की वाणी - अमृतवाणी कर देती उद्धार : बाबाजी

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संत-महात्मा अपने सत्संगों में अक्सर फरमाया करते हैं की संत सत्य पर प्रकाश डालते हैं। सत्य का अनुभव हमारे सामने रखते हैं। सत्य क्या है? यह सब बातें सत्संग के जरिए हमें समझाते हैं। संत अपनी वाणी में इतना असरदार रस खोलते हैं कि उनकी वाणी अमृत के समान लगती है। क्योंकि वे अपनी वाणी में सच पर जोर देते हैं। संत महात्मा समझाते हैं :- जो पौधा हम लगाते हैं,  उसकी वृद्धि करना हमारे बस में नहीं है। वह पौधा अपने समय पर ही फूलेगा-फलेगा। हमारा काम तो महज गड्ढा खोदकर, खाद डालकर, बीज बोकर उसे मिट्टी से ढक देना है। उसे पानी देना है, उसकी कीड़ों से रक्षा करनी है तथा रोज-रोज उसकी देखभाल करना है। यह भी पढें :- कैसे जानें? वक़्त के सतगुरु से रूहानियत की राह हम केवल इतना ही कर सकते हैं। किस गति से पौधा पड़ता है, यह हमारे हाथ में नहीं है। अगर भजन-सिमरन के प्रति भी हमारी ऐसी ही मनोवृति हो जाए तो हम सतगुरु के काम में बाधा नहीं डालेंगे और आध्यात्मिकता का पौधा निश्चय ही बढेगा और हमारे जीवन में फलीभूत होगा। अपने आपको मजबूत बनाये : अगर पौध की जड़े पूरी तरह से गहरी और मजबूत होने...

कैसे जानें? वक़्त के सतगुरु से रूहानियत की राह

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Radha Soami-संत-महात्माओं का संदेश हर जाति के लिए, हर कौम के लिए, हर मजहब के लिए होता है। संत-महात्मा अपनी वाणीयों में रूहानियत का जिक्र करते हुए फरमाते हैं की हर एक जीव के अंदर परमात्मा वास करता है। हर एक जीव, पशु , पक्षी के अंदर परमात्मा बसा हुआ है। हमें केवल पहचानने की जरूरत है। और इसकी पहचान कैसे की जाए। इसकी हमें कैसे जानकारी मिले। इसके लिए हमें किसी वक्त के संत-सतगुरु की आवश्यकता होती है, जो हमें इस राह की जानकारी दे सकें। वक़्त के सतगुरु की शरण हमें किसी वक्त की सतगुरु की शरण लेनी होती है। उनके सतसंग का समागम करना होता है। हमें उनके विचारों को सुनकर, उनके विचारों पर अमल करना होता है। क्योंकि जब तक हम उनके विचारों पर अमल नहीं करेंगे, उनके कहने के अनुसार नहीं चलेंगे तो हम रूहानियत की राह पर नहीं चल सकेंगे, और ना हम उस परमात्मा को पा सकेंगे। इसलिए संत महात्मा समझाते हैं कि सबसे पहले किसी इस वक्त की संत सतगुरु की शरण में जाओ और उसे रूहानियत के बारे में जानकारी प्राप्त करो। बाबाजी के विचार :- परमात्मा को पाना है? जानें ये विधि बाबा जी फरमाते हैं कि जब...

परमात्मा को पाना है? जानें ये विधि

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संतमत का सिद्धांत है, कि हमेशा हक-हलाल की कमाई पर गुजारा करना, नेक नियत पर चलना, कभी भी परमात्मा आपका बुरा नहीं करेगा। सामने वाला चाहे आप का कितना भी बुरा करने की कोशिश क्यों ना करें, परंतु वह परमात्मा आप का बुरा नहीं होने देंगे। परमात्मा को हर एक जीव के बारे में पूरा ज्ञान होता है कि उसके अंदर क्या चल रहा है। उसकी सोच कैसी है। उसका दूसरे व्यक्ति के लिए दिल में क्या जगह है। परमात्मा नेक नीति वाले व्यक्ति के हमेशा साथ रहते हैं। और उसका हर एक मुसीबत की स्थिति में साथ खड़े रहते हैं। बाबाजी के विचार :-  बाबाजी के इन वचनों का कोई मोल नही है। क्या है यें वचन? परमात्मा की युक्ति पाना सौभाग्य की बात परमात्मा हमेशा अपने शिष्य की देखरेख करता है। और जो मनुष्य परमात्मा से जुड़े होते हैं, जो उस परमात्मा की याद में समय बिताते हैं। वह जीव मालिक के प्यारे होते हैं। परमात्मा की भक्ति करना बहुत बड़े सौभाग्य की बात है, क्योंकि उस परमात्मा की मंजूरी से ही हमें उस परमात्मा की शरण में जाने का मौका मिला। हमें एक देहधारी सतगुरु की शरण मिली। जिसके जरिए हम इस मनुष्य जन्म का लाभ उठा सकते ...

पाँच तत्व का क्या है राज़? बाबाजी ने बताया

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बाबा जी फरमाते हैं की शब्द ने इस दुनिया की रचना की है और जिस समय परमात्मा उस शब्द की ताकत को इस दुनिया से खींच लेगा, यहां प्रलय और महाप्रलय हो जाएगी। यह जितनी भी दुनिया की रचना है, सब पांच तत्वों की बनी हुई है। ये पांच तत्व है :- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। हर एक चीज में कोई ना कोई तत्व मौजूद है। ये पांचों ही तत्व एक-दूसरे के दुश्मन है। लेकिन शब्द के कारण और शब्द के आसरे ही यह एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं। शब्द की ताकत जिस समय परमात्मा उस शब्द की ताकत को दुनिया से निकाल लेता है। पृथ्वी पानी में ही भूल जाती है, पानी को अग्नि ख़ुश्क कर देती है, अग्नि को हवा उड़ा ले जाती है और हवा को आकाश खा जाता है। और इस सारी दुनिया में धुंधकार छा जाता है। इसी तरह हमारा यह शरीर पांच तत्वों का पुतला है। जब तक उस शब्द की किरण हमारे अंदर है। हम दुनिया में किस तरह दौड़ते फिरते हैं। जिस दिन उस शब्द की किरण या आत्मा को परमात्मा शरीर से निकाल लेता है। हमारा सारा शरीर यानी यह पांचों तत्व बेकार हो जाते हैं। ये पांच तत्व, पांच तत्वों में ही जाकर मिल जाते हैं और हमारी हस्ती खत्म हो जाती है। इसी त...

बाबाजी के इन वचनों का कोई मोल नही है। क्या है यें वचन?

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संत-महात्मा हर युग में यही समझाते आए हैं कि केवल भजन-सुमिरन ही जेलखाने से छुटकारा दिला सकता है। भजन सुमिरन द्वारा ही हम अपने असली  मकसद को हासिल कर सकते हैं। परमपिता परमात्मा से मिला कर सकते हैं। उसके लिए हमें अपने आपको भजन-सिमरन में लगा देना है। अपने मन को एकाग्र करना है। महाराज चरन सिंह जी फ़रमाते हैं भजन-सुमिरन द्वारा हम अपने ध्यान को यहां आंखों के बीच में ठहराने की कोशिश करते हैं, ताकि यह नीचे इंद्रियों की ओर न जाये। मन को आंखों के बीच में स्थिर करना तथा उसे नीचे ना गिरने देना ही एकाग्र होना है। बाबाजी के कथन :- कुछ और विचारणीय सन्देश जो आपकी दिशा बदल देगा। बाबाजी समझाते हैं कि मन कंप्यूटर के समान है। जो कुछ हम इसमें डालते हैं, वही हमें वापस मिलता है। हम भौतिक जगत के बारे में सूचनाएं डालेंगे तो मन पर भौतिक संस्कार जमा हो जाएंगे और अगर हम आध्यात्मिक सूचनाएं अंदर भेजेंगे तो इसमें अति सूक्ष्म प्रभाव जमा हो जायेंगे। मन भौतिक और आत्मिक दोनों क्षेत्र में भली-भांति कार्य करता है। अभ्यास के समय मन के स्वभाव को नहीं बदलते, हम तो बस मन की आदत से लाभ उठाकर, सांसारिक बात...

कुछ और विचारणीय सन्देश जो आपकी दिशा बदल देगा।

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बाबा जैमल सिंह जी एक जगह फ़रमाते है कि मन को पकड़ने की युक्ति सतगुरु के वचन हैं, दूसरी युक्ति शब्द-धुन है, तीसरी धुन से प्रीति लगाना है और चौथी उसमें रस का प्राप्त होना है। फिर सतगुरु का स्वरूप मन में उतर जाता है। जैसे शीशे में अपना चेहरा ख़ूब अच्छी तरह से दिखायी देता है, उसी तरह सतगुरु के स्वरूप का चेहरा ज्यों का त्यों अन्तर में, मन में दिखाई देगा। जब हर वक़्त मन की वृत्ति या तवज्जुह, जो सुरत का अंश है, रोज़-रोज़ भजन करने से निर्मल होती जायेगी और जब मन से कुल संसार की वासना निकल जायेगी, तब मन कभी बाहर की वृत्तियों के साथ नही जायेगा। केवल सतगुरु के स्वरूप में रहेगा। फिर सतगुरु उसे दया की दृष्टि से देखेंगे। जब सतगुरु की दया की दृष्टि उस पर पड़ेगी, तब मन के सब स्थूल विकार दूर हो जायेंगे और वह सुरत के द्वारा प्रीति करेगा। सूरत शब्द की धार- धुन-से प्रीति करेगी , फिर धुन सुरत को परखकर , अपने साथ मिलाकर थोड़ा- सा रस देगी। बाबाजी के विचार :- मन में नम्रता, सेवा भाव से भजन सुमिरन में आसानी होती हैं महाराज जगत जी फरमाते हैं एक जगह महाराज जगत जी फरमाते हैं, कि रत्ती भर अभ्यास मन भर...

मन में नम्रता, सेवा भाव से भजन सुमिरन में आसानी होती हैं

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Radha Soami-बाबाजी अपने सत्संगों में अक्सर फ़रमाते है कि भजन सुमिरन में सेवा भाव होना बहुत जरूरी है। सेवा से मन में नम्रता आती है। मन में नम्रता से हमे भक्ति यानी परमात्मा से मिलाप करने में आसानी होती है। मन भजन में लगता है, जिससे हम परमात्मा की भक्ति की ओर ज्यादा ध्यान दे पाते हैं, यानी हम परमात्मा की ओर करीब आ जाते हैं। हमें बाबा जी द्वारा बताए गए तरीकों पर अमल करते हुए भजन सुमिरन करना है। और जब भी हमें सेवा करने का मौका मिले, हमें दिल से सेवा करनी चाहिए। क्योंकि सेवा से मन में नम्रता, दीनता आती है। जिससे मन झुकना सीखता है। जिसके जरिए हम भजन सुमिरन ठीक से कर पाते हैं, क्योंकि मन में नम्रता आने के कारण मन एक जगह आकर रुक जाता है स्थिर हो जाता है। बाबाजी के कथन :- सच्चा नाम ही हमारे मन को निर्मल, पवित्र और पाक कर सकता है। सेवा अनेक प्रकार की हो सकती है, बड़े बुजुर्ग की सेवा करना, हक हलाल की कमाई खाना, बाबा जी के हुकम में रहना और सब से अत्याधिक जरूरी बात कि बाबा जी द्वारा बताए गए विधि अनुसार ज्यादा से ज्यादा समय भजन सिमरन को को देना। यह सबसे बड़ी सेवा है। जि...

सच्चा नाम ही हमारे मन को निर्मल, पवित्र और पाक कर सकता है।

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बाबाजी फ़रमाते है कि जिस समय हमारे हृदय में नाम प्रकट हो जाता है, हमारे सब कर्मों का सिलसिला खत्म हो जाता है। जिनकी वजह से हम देह के बंधनों में फंसे हुए हैं।  जिस तरह एक सूखी घास का ढेर कितना ही बड़ा क्यों न हो, आग की चिंगारी उस पूरे ढेर को जलाकर राख कर सकती है। इसी तरह हम संसारी और मनमुख पुरुषों के कितने भी बुरे और खोटे कर्म क्यों न हो। यह नाम की कमाई हमारे सब कर्मों का हिसाब खत्म कर देती है। नाम की महिमा अगर कोई कोढी भी है, जिसके शरीर से पानी बह रहा है, लेकिन उसका ख्याल अंदर शब्द या नाम के साथ जुड़ गया है। तो वह उस व्यक्ति से कहीं अच्छा है, जो सोने जैसी काया और दुनिया की सब ऐशो-आराम लेकर बैठा है। मगर परमात्मा को भुला हुआ है। बाबाजी का कथन :- बाबा जी ने बताया, ऐसे उठायें मनुष्य जन्म का लाभ परमात्मा हमारे अंदर जिस सच्चे नाम की महात्मा इतनी महिमा करते हैं, वह नाम कहीं बाहर नहीं है। वह हमारे शरीर के अंदर है उसको बाहर ढूंढने का कोई फायदा नहीं है। उस नाम की साथ जुड़ना है। और परमात्मा से जा मिलना है। अगर हम बाहर उस परमात्मा की ख़ोज करेंगे तो हमसे बड़ा अज्ञ...

बाबाजी की इन बातों को नही पढ़ा, तो सब बेकार है

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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजौं आपना, मुझसा बुरा न  होय।। कबीर सब तें हम बुरे, हम तें भल सब कोय। जिन ऐसा करी बूझिया, मित्र हमारा सोय।। महात्माओं का समझाने का  तरीका महात्माओं का हमें समझाने का सिर्फ यही मतलब है, कि किसी चीज का घमंड और अहंकार नहीं करना चाहिए। इंसान के जामे में बैठकर मन में नम्रता, दीनता और आजिजी रखनी चाहिए और नाम की कमाई करनी चाहिए क्योंकि नाम की कमाई ही हमारा साथ देगी और तभी हमारा देह में आने का मकसद पूरा हो सकेगा। बाबाजी का कथन :-  सत्संग आपके भाग्य को बदल सकता है। बाबाजी का कथन। नाम की कमाई, उत्तम कमाई शब्द या नाम की कमाई के सिवाय और कोई उपाय और तरीका नहीं है जिससे हम देह के बंधनों से छुटकारा प्राप्त कर सकें। इसके अलावा बाकी जितनी भी साधन है जैसे जप-तप, पूजा-पाठ, दान-पुण्य वगैरह सब का फल हमें जरूर मिलता है। लेकिन उनका फल लेने के लिए हमें फिर से देह के बंधनों में आना पड़ता है। नेक कर्म करते हैं तो राजा-महाराजा बनकर आ जाते हैं। सेठ साहूकार बनकर आ जाते हैं। ज्यादा से ज्यादा बैकुंठों-स्वर्गों तक पहुंच जाते...

बाबा जी ने बताया, ऐसे उठायें मनुष्य जन्म का लाभ

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परमात्मा ने इंसान की जामे को सबसे ऊंचा रखा है। यह सीढी का आखिरी डंडा है। अगर कोशिश करते हैं तो मकान की छत पर चले जाते हैं यानी मालिक से मिल जाते हैं, अगर पैर फिसलता है तो सीधे नीचे चौरासी की जेलखाने में आ जाते हैं। कई जन्म कीड़ों-पतंगों के पाये, कई जन्म हाथी, मछली और हिरणों के पाये, कई जन्म पक्षियों और सांपों के मिले और कई जन्म घोड़ों, पशुओं और पेड़-पौधों के पाये। काफी समय के बाद परमात्मा ने अपनी भक्ति के लिए अब यह इंसान का जामा बख्शा है। हमें इससे पूरा फायदा उठाना चाहिए। बाबाजी का कथन :- अगर आपको मिल जाये ये दात, तो आप हो जायेंगे धनी मौलाना रूम फरमाते हैं हमचू सब्ज़ा बारहा रोईदा अम, नुह सदो-हफ्ताह क़ाबिल दीदा अम। अर्थात वनस्पति की तरह मैं कई बार पैदा हुआ हूं और नौ सौ सत्तर शरीर मैंने देखे हैं। कबीर साहिब समझाते हैं कबीर मानस जन्म दुर्लभ है होए न बारै बार।। जीउ बन फल पाके भुए गिरह बहुर न लागह डार।। जिस तरह वृक्ष से फल पक कर नीचे गिरता है तो वह फिर वृक्ष से वापस नहीं जुड़ सकता। इसी तरह अगर हम इंसान के जामे को अब व्यर्थ गंवा बैठेगे, तो फिर यह अवस...

सत्संग आपके भाग्य को बदल सकता है। बाबाजी का कथन।

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संत-महात्मा सत्संग में फरमाते हैं कि इस दुनिया में हम कभी सुख-शांति प्राप्त नहीं कर सकते। यह जो थोड़े बहुत सुख नजर आ रहे हैं। वह समय पाकर दुखों में ही बदल जाते हैं। महात्मा हमें अपने अनुभव से समझाते हैं कि जब तक हमारी आत्मा परमात्मा से मिलाप नहीं करती, हम कभी सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकते। दुःखों के कारण दुनिया के सब जीव अपनी-अपनी जगह दुखों और मुसीबतों के मारे हुए हैं, असली सुख और शांति उसी को है जिसने मालीक की भक्ति और प्यार का सहारा लिया हुआ है। हम दुनिया के जीव उस परमात्मा को तो भूल बैठे हैं, उसकी खोज नहीं करते, उसकी भक्ति की और हमारा ख्याल ही नहीं है। और दुनिया की शक्लों और पदार्थों में सुख और शांति ढूंढने की कोशिश करते हैं। हम सब का अनुभव है कि जितना हम उस परमात्मा को भूलकर सुख और शांति ढूंढ रहे हैं। उतना ही दिन-रात ज्यादा दुखी होते जा रहे हैं। क्योंकि जिन शक्लों और पदार्थों में हम सुख ढूंढ रहे हैं। वह सब चीजें नाशवान है, और उनका सुख भी केवल आरजी ही हो सकता है। बाबाजी का कथन :- अगर आपको मिल जाये ये दात, तो आप हो जायेंगे धनी मालिक की भक्ति दुर्लभ मालि...

अगर आपको मिल जाये ये दात, तो आप हो जायेंगे धनी

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संत -महात्मा अपने हर एक सत्संग में नाम और उसकी भक्ति के बारे में फ़रमाते हैं। संत बताते हैं कि जिस भी व्यक्ति को नामदान की दात मिल गयी वो व्यक्ति संसार का सबसे धनी व्यक्ति बन जाता है, परन्तु उसकी महिमा को जानना बहुत जरूरी है। उसको यह जानना बहुत जरूरी है कि वह अनमोल नाम का हमारे जीवन में क्या महत्व है। उसको पाने से हम क्या कर सकते है। हमारे घर यानी शरीर के अंदर परमात्मा ने नाम रूपी अपार दौलत रखी है, लेकिन हमारा मन बहिर्मुखी होकर भर्मों में उलझा हुआ है। जब तक हम अपने शरीर के अंदर खोज नहीं करते, उस दौलत को प्राप्त नहीं कर सकते। कहीं-कहीं आबादियों के नीचे पुराने कुएं दबे होते हैं। हम उन जमीनों पर चलते-फिरते हैं, लेकिन हमें मालूम नहीं होता कि इस जगह मिट्टी के नीचे कुंआ दबा हुआ है। ओड लोग विद्या और हुनर के द्वारा हमें वह जगह बता देते हैं। जहां मिट्टी की खुदाई करने से बना बनाया कुआं मिल सकता है। ओड लोग कुआं बना कर उसे मिट्टी से नहीं दबा देते। उनको सिर्फ यह ज्ञान और इल्म होता है जिसका फायदा उठाकर हम उस कुँए का उपयोग कर सकते हैं। बाबाजी की वाणी :- परमात्मा की खोज अपने अ...