संत-महात्मा हर युग में यही समझाते आए हैं कि केवल भजन-सुमिरन ही जेलखाने से छुटकारा दिला सकता है। भजन सुमिरन द्वारा ही हम अपने असली मकसद को हासिल कर सकते हैं। परमपिता परमात्मा से मिला कर सकते हैं। उसके लिए हमें अपने आपको भजन-सिमरन में लगा देना है। अपने मन को एकाग्र करना है।
महाराज चरन सिंह जी फ़रमाते हैं
भजन-सुमिरन द्वारा हम अपने ध्यान को यहां आंखों के बीच में ठहराने की कोशिश करते हैं, ताकि यह नीचे इंद्रियों की ओर न जाये। मन को आंखों के बीच में स्थिर करना तथा उसे नीचे ना गिरने देना ही एकाग्र होना है।
भजन-सुमिरन द्वारा हम अपने ध्यान को यहां आंखों के बीच में ठहराने की कोशिश करते हैं, ताकि यह नीचे इंद्रियों की ओर न जाये। मन को आंखों के बीच में स्थिर करना तथा उसे नीचे ना गिरने देना ही एकाग्र होना है।
बाबाजी के कथन :- कुछ और विचारणीय सन्देश जो आपकी दिशा बदल देगा।
बाबाजी समझाते हैं कि मन कंप्यूटर के समान है। जो कुछ हम इसमें डालते हैं, वही हमें वापस मिलता है। हम भौतिक जगत के बारे में सूचनाएं डालेंगे तो मन पर भौतिक संस्कार जमा हो जाएंगे और अगर हम आध्यात्मिक सूचनाएं अंदर भेजेंगे तो इसमें अति सूक्ष्म प्रभाव जमा हो जायेंगे। मन भौतिक और आत्मिक दोनों क्षेत्र में भली-भांति कार्य करता है। अभ्यास के समय मन के स्वभाव को नहीं बदलते, हम तो बस मन की आदत से लाभ उठाकर, सांसारिक बातें एक और रखकर आत्मिक प्रभाव अंदर भेजते हैं।
बाबाजी के कथन :- मन में नम्रता, सेवा भाव से भजन सुमिरन में आसानी होती हैं
ज्यों-ज्यों हमारे अंदर सतगुरु और शिष्य के वास्तविक संबंध का अहसास गहरा होता जाता है, हमारा हृदय एक अकथनी आनंद, शुक्राने और भक्ति-भाव से भर जाता है। भजन-सुमिरन में उन्नति से यह भक्ति-भाव और अधिक गहरा और बलवान होता जाता है और अंत में हम उस अवस्था तक पहुंच जाते हैं। जिसमें समझ आ जाती है कि शब्द, सतगुरु और शिष्य एक ही हैं।
|| राधास्वामी ||
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