रविवार, 20 जनवरी 2019

संतों की वाणी - अमृतवाणी कर देती उद्धार : बाबाजी

संत-महात्मा अपने सत्संगों में अक्सर फरमाया करते हैं की संत सत्य पर प्रकाश डालते हैं। सत्य का अनुभव हमारे सामने रखते हैं। सत्य क्या है? यह सब बातें सत्संग के जरिए हमें समझाते हैं। संत अपनी वाणी में इतना असरदार रस खोलते हैं कि उनकी वाणी अमृत के समान लगती है। क्योंकि वे अपनी वाणी में सच पर जोर देते हैं।


संत महात्मा समझाते हैं :-
जो पौधा हम लगाते हैं,  उसकी वृद्धि करना हमारे बस में नहीं है। वह पौधा अपने समय पर ही फूलेगा-फलेगा। हमारा काम तो महज गड्ढा खोदकर, खाद डालकर, बीज बोकर उसे मिट्टी से ढक देना है। उसे पानी देना है, उसकी कीड़ों से रक्षा करनी है तथा रोज-रोज उसकी देखभाल करना है।




हम केवल इतना ही कर सकते हैं। किस गति से पौधा पड़ता है, यह हमारे हाथ में नहीं है। अगर भजन-सिमरन के प्रति भी हमारी ऐसी ही मनोवृति हो जाए तो हम सतगुरु के काम में बाधा नहीं डालेंगे और आध्यात्मिकता का पौधा निश्चय ही बढेगा और हमारे जीवन में फलीभूत होगा।


अपने आपको मजबूत बनाये :
अगर पौध की जड़े पूरी तरह से गहरी और मजबूत होने से पहले ही हम उसकी वृद्धि की गति करने का प्रयास करेंगे तो काल के तूफ़ान उसे उखाड़ कर फेंक सकते हैं, नष्ट कर सकते हैं। अगर हम जल्दबाजी करेंगे, अपनी आशाओं को पूरा करने और रूहानी नजारे देखने के लिए सतगुरु पर जोर डालेंगे तो हम उनकी काम में अड़चन पैदा करते हैं।




इसलिए हमें चाहिए संतों की वाणी पर अमल करें। उनके कहने के नियमित उस परमात्मा को याद करें । भजन-सुमिरन करें और मनुष्य जन्म का लाभ लें, और परमात्मा में समा जाओ।


                || राधास्वामी ||

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