सोमवार, 7 जनवरी 2019

सच्चा नाम ही हमारे मन को निर्मल, पवित्र और पाक कर सकता है।

बाबाजी फ़रमाते है कि जिस समय हमारे हृदय में नाम प्रकट हो जाता है, हमारे सब कर्मों का सिलसिला खत्म हो जाता है। जिनकी वजह से हम देह के बंधनों में फंसे हुए हैं।



 जिस तरह एक सूखी घास का ढेर कितना ही बड़ा क्यों न हो, आग की चिंगारी उस पूरे ढेर को जलाकर राख कर सकती है। इसी तरह हम संसारी और मनमुख पुरुषों के कितने भी बुरे और खोटे कर्म क्यों न हो। यह नाम की कमाई हमारे सब कर्मों का हिसाब खत्म कर देती है।


नाम की महिमा
अगर कोई कोढी भी है, जिसके शरीर से पानी बह रहा है, लेकिन उसका ख्याल अंदर शब्द या नाम के साथ जुड़ गया है। तो वह उस व्यक्ति से कहीं अच्छा है, जो सोने जैसी काया और दुनिया की सब ऐशो-आराम लेकर बैठा है। मगर परमात्मा को भुला हुआ है।




परमात्मा हमारे अंदर
जिस सच्चे नाम की महात्मा इतनी महिमा करते हैं, वह नाम कहीं बाहर नहीं है। वह हमारे शरीर के अंदर है उसको बाहर ढूंढने का कोई फायदा नहीं है। उस नाम की साथ जुड़ना है। और परमात्मा से जा मिलना है। अगर हम बाहर उस परमात्मा की ख़ोज करेंगे तो हमसे बड़ा अज्ञानी कोई हो ही नही सकता। क्योंकि परमात्मा तो हमारे अंदर विराजमान है।




अगर किसी को साँप डस लेता है तो उसके इलाज़ के लिए, उसका जहर उतारने के लिए किसी डॉक्टर के पास जाये हैं। उसकी दवा के द्वारा साँप का ज़हर उतर जाता है। इसी प्रकार अगर मन मनरूपी साँप का ज़हर अपने अंदर से निकालना चाहते है तो हमे संतों के पास जाकर अपने ख़्याल को शब्द या नाम के साथ जोड़ना होगा। मन को वस में करने का और कोई इलाज या तरीका नही है।


इसलिए हमें भी चाहिए की ज्यादा से ज्यादा भजन - सुमिरन करें ताकि हमारा इस चौरासी के आवागमन के चक्कर से छुटकारा मिले। और हम परमात्मा के पास अपने निज घर जाकर परमात्मा में समा जाएँ।


                || राधास्वामी ||

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