सत्संग आपके भाग्य को बदल सकता है। बाबाजी का कथन।

संत-महात्मा सत्संग में फरमाते हैं कि इस दुनिया में हम कभी सुख-शांति प्राप्त नहीं कर सकते। यह जो थोड़े बहुत सुख नजर आ रहे हैं। वह समय पाकर दुखों में ही बदल जाते हैं। महात्मा हमें अपने अनुभव से समझाते हैं कि जब तक हमारी आत्मा परमात्मा से मिलाप नहीं करती, हम कभी सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकते।



दुःखों के कारण
दुनिया के सब जीव अपनी-अपनी जगह दुखों और मुसीबतों के मारे हुए हैं, असली सुख और शांति उसी को है जिसने मालीक की भक्ति और प्यार का सहारा लिया हुआ है। हम दुनिया के जीव उस परमात्मा को तो भूल बैठे हैं, उसकी खोज नहीं करते, उसकी भक्ति की और हमारा ख्याल ही नहीं है। और दुनिया की शक्लों और पदार्थों में सुख और शांति ढूंढने की कोशिश करते हैं। हम सब का अनुभव है कि जितना हम उस परमात्मा को भूलकर सुख और शांति ढूंढ रहे हैं। उतना ही दिन-रात ज्यादा दुखी होते जा रहे हैं। क्योंकि जिन शक्लों और पदार्थों में हम सुख ढूंढ रहे हैं। वह सब चीजें नाशवान है, और उनका सुख भी केवल आरजी ही हो सकता है।




मालिक की भक्ति दुर्लभ
मालिक की भक्ति दुर्लभ है, इसकी महिमा बयान से बाहर है। हम सब दुनिया के जीव किसी न किसी के मोह और प्यार में फंसे हुए हैं। किसी न किसी की भक्ति और पूजा जरूर कर रहे हैं। कोई बेटे-बेटियों से प्यार करता है। कोई कोंमों, कोई मजहबों और मुल्कों की भक्ति कर रहा है। कोई धन-दौलत की पूजा करता है। यह शक्ले और पदार्थ हमारी भक्ति और प्यार के काबिल नहीं, क्योंकि इनकी प्राप्ति और भक्ति हमें बार-बार देह के बंधनों में खींच कर ले आती है।




संतों का कथन
इसीलिए संत-महात्मा बार-बार भजन सुमिरन पर जोर देते हैं। संत समझाते हैं कि जितना भी समय भजन सिमरन को दिया जाए कम है। इसका यही आधार है। जिसके जरिए आत्मा परमात्मा से मिला कर सकती है। हमारा देह के बंधनों से छुटकारा हो सकता है।


                 || राधास्वामी ||

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