संदेश

दिसंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संतों के वचन आपको परमात्मा से मिला सकते हैं

चित्र
बाबाजी अक्सर सत्संग में फरमाते है कि सत्संग में आपको अनुभवी बातों के बारे में बताया जाता है। जो संतों महात्माओं ने अनुभव किया है वही विचार आपके आमने रखते है। आपको किसी वक़्त के गुरु से वह रूहानी ताले की चाबी मिल सकती है। हमे हमेशा पूर्ण गुरु की संगति करनी चाहिए। क्योंकि पूर्ण गुरु ही आपको अपने निज धाम यानि परमात्मा से मिला सकता है। बाबाजी फ़रमाते है अगर आपको जब भी कहीं भी सत्संग मिलता है उसका हमेसा फायदा उठाना चाहिए, सत्संग से मनुष्य की सजा सुली से सुल हो जाती है, क्योंकिं सत्संग में एक पल भी बिताया है तो वो आपको रूहानियत के लिए बहुत ही सार्थक होगी। सत्संग से आपके घर - परिवार में अच्छा माहौल बनता है। घर में सुख और शान्ति का वास होता है। इससे आपके भजन-सुमिरन में मन लगता है। बाबाजी के वचन :- नेक-कमाई परमात्मा की प्राप्ति का आसान रास्ता है भजन सुमिरन पर दें ध्यान बाबाजी अक्सर बताते है कि जब भी आपको समय मिले वो पल उस परमात्मा का की याद में बिताना। कभी भी भजन सुमिरन को नही भूलना चाहिए। भजन ही आपको इस आवागमन से छुटकारा मिल सकता है। तो हमे भी चाहिए की ज्यादा से ज्यादा...

नेक-कमाई परमात्मा की प्राप्ति का आसान रास्ता हैं।

चित्र
सतों ने यह विचार भी बलपूर्वक प्रकट किया है कि परिश्रम का जाति-पाति से कोई संबंध नहीं है और कोई भी व्यवसाय छोटा या नीच नहीं है। जिस भी सदाचारपूर्ण कार्य के द्वारा हम ईमानदारी के साथ अपनी जीविका कमा सकें, वही अच्छा काम है और रूहानी तरक्की में हमारी सहायता करता है। इसीलिए संत महात्मा समझाते हैं कि नेक कमाई करो, हक हलाल की कमाई खाओ। गुरु रविदास जी ने 'सुकीरति' या नेक कमाई को इतना महत्व दिया है कि आपने सुकृत को ही सच्चा धर्म, सच्ची शांति का स्त्रोत और भवसागर से पार होने के लिए सरल तथा उत्तम साधन माना है। आप कहते हैं कि परमार्थ के प्रेमी को, श्रम को ही ईश्वर मानते हुए, नेक कमाई में लगे रहना चाहिए। ऐसा सुकृत, मनुष्य के रुहानी अभ्यास में सहायक होकर उसे प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर दृढ़ता पूर्वक चलने की प्रेरणा देता है। बाबाजी के विचार :-  दान देने से भी कर्म बनते है।अहंकार आता है। आप जी स्पष्ट करते हैं कि केवल श्रम ही काफी नहीं है, श्रम का नेक और पवित्र होना भी अत्यंत आवश्यक है। जिनके पास धर्म अथवा नीतिपूर्ण  'श्रमसाधना' (हक हलाल की कमाई ) और प्रभु भक्ति का दोह...

परमात्मा की खोज अपने अंदर करो, बाहर नही। बाबाजी का कथन

चित्र
जिस परमात्मा ने दुनिया की रचना की है, वह चौबीस घण्टे तुम्हारे साथ-साथ है।लेकिन हम दुनिया के जीव अपनी देह के अंदर जाकर कभी परमात्मा की खोज करने की कोशिश नही करते।  हमेशा उसे या तो जंगलों और पहाड़ों में ढूँढने की कोशिश करते है या ग्रन्थों-पोथियों में पाना चाहते है या समझते है कि वह गुरुद्वारों, मंदिरों, मसजिदों या गिरजा-घरों में ही मिल सकता है। कभी विचार है कि वह आसमानों के पीछे छिपा बैठा है। लेकिन जिस जगह वह परमात्मा है, उस जगह तलास नही करते। सच्चे मालिक के भक्त :- जो मालिक की असली भक्त और प्यारे हैं। जिनको किसी संत-महात्मा की संगति मिल चुकी है। वह परमात्मा को शरीर या देह के अंदर ढूंढते हैं, बाकी सब दुनिया के जीव भ्रमों में फंसकर यहीं भूले फिरते हैं। बाबाजी के विचार :- धन-दौलत पापों के बिना इकट्ठे नहीं होती:- बाबाजी बाहर खोजना व्यर्थ है :- हम पत्थर और ईटें इकट्ठी करके मस्जिद या मालिक के रहने की जगह बना लेते हैं और उसके ऊपर चढ़कर मौलवी ऊंची-ऊंची बांग देकर परमात्मा को पुकारता है। जैसे कि परमात्मा बहरा है और हमारी आवाज उस तक नहीं पहुंच सकती। बाबाजी के विचार :-...

दान देने से भी कर्म बनते है।अहंकार आता है।

चित्र
गुरुमत पूर्ण ज्ञानी सतगुरु के बताए मार्ग और आदेश पर चलने का नाम है।  यह सिद्धांत पूर्ण गुरु के शिष्य की संपूर्ण रहनी पर लागू होता है और दान-पुण्य आदि का विषय भी इसी में शामिल है। दान ऐश का साधन नही पंडित, पुरोहित, महंत, मुल्ला, पादरी तथा मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों, सत्संग घरों आदि के प्रबंधक भी इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि दान का धन ऐश, आराम और विलास का बहुत आसान साधन है। इस भावना को जितनी जल्दी त्याग दिया जाए, अच्छा है। बाबाजी का कथन :- हक हलाल की कमाई से सुख और आनंद की प्राप्ति होती हैं कबीर साहिब फरमाते हैं कि गृहस्थ और दुनियादार लोग अनेक कामनाएं मन में रखकर दान देते हैं। साधु कहलाने वाले जो लोग समझते हैं कि वह इस इस पराया धन को हजम कर लेंगे वे अपने आप को धोखा दे रहे हैं। बाबाजी का कथन :- धन-दौलत पापों के बिना इकट्ठे नहीं होती:- बाबाजी दान देने का तरीका दान विवेकपूर्वक देना चाहिए। ऐसे लोगों को दान देना उचित नहीं है, जो दान से प्राप्त धन को शराब आदि में खर्च करते हैं। ऐसा दान जीव के बंधन का कारण बनता है। परंतु परमात्मा की साथ अभेद ...

धन-दौलत पापों के बिना इकट्ठे नहीं होती:- बाबाजी

चित्र
संत महात्मा कहते हैं कि धन-दौलत पापों के बिना इकट्ठे नहीं होती और अतः समय साथ नहीं जाती। गुरु नानक साहिब फरमाते हैं कि लोग धन-दौलत इकट्ठा करने में खोए हुए हैं और इस बात पर विचार करने का यत्न नहीं करते कि वे पापों का ऐसा भारी बोझ इकट्ठा कर रहे हैं जो अनेक लोगों की रूहानी विनाश कारण बन चुका है और अब उनके विनाश का कारण बनेगा। धन जो पाप के बिना इकट्ठा नहीं हो सकता, मृत्यु के बाद साथ नहीं जा सकता और प्रभु की दरगाह में दुर्दशा का कारण बनता हैं, वह हमारे लिए लाभदायक किस प्रकार हो सकता है? गुरु अमरदास जी फरमाते हैं कि राजा, शासकीय अधिकारी आदि धन के मोह के अधीन, परायी दौलत हथिया कर माया के विष का भंडार इकट्ठा कर लेते हैं। वास्तव में लोभ, लालच और माया उनको छल लेते हैं और अंत समय उन्हें यम के हाथों चोटें सहनी पड़ती है। बाबाजी का कथन :- शिष्य का कर्तव्य, सतगुरु का आदर करना सच्चा गुरु कौन? अगर कोई गुरु या पीर होकर शिष्यों से भीख मांगता फिरता है तो उसके पैरों पर कभी सिर नहीं झुकाना चाहिए। जो मेहनत करके अपनी रोजी कमाता हो और उसे हक-हलाल की कमाई में से साधसंगत की सेव...

हक हलाल की कमाई से सुख और आनंद की प्राप्ति होती हैं

चित्र
जो लोग सच्चे दिल से महसूस करते हैं कि सच्चा और स्थायी आनंद, नेक जीवन और प्रभु प्राप्ति में ही है। वे प्रसन्नतापूर्वक हक-हलाल की कमाई का नियम स्वीकार करते हैं। जो लोग आचरण की पवित्रता और आत्मिक आनंद से परिचित है या जो इसकी प्राप्ति के इच्छुक है, वे अनुचित ढंग से की गई कमाई का त्याग करते हैं। इस प्रकार की कमाई का त्याग उन्हें परमार्थरूपी हीरे-जवाहरात की प्राप्ति के लिए ईटों-पत्थरों की कुर्बानी के समान प्रतीत होता है। भूखे की कभी भूख नही मिटती :- परंतु जो लोग इस आनंद से अनजान है और जिन्हें इसे प्राप्त करने का कोई चाह नहीं है। उन्हें दुनिया की नाशवान भोग और धन-दौलत ही सब कुछ प्रतीत होते हैं। वे यह नहीं जानते कि यह भोग और अनुचित ढंग से कमाया गया धन लोक और परलोक दोनों में ही उनकी दुर्दशा का कारण बनता है। अतः मनुष्य को चाहिए कि जो कुछ अपनी हक-हलाल की कमाई से मिले उस पर संतोष करें तथा भोगों की लालच से बचे। धन की तृष्णा अग्नि के समान है जो लकड़ी डालने पर कभी भी शांत नहीं होती बल्कि और भडक उठती है। सारे संसार का धन भी लालची के मन की भूख को कभी नहीं मिटा सकता। बाबाजी के वचन :...

शिष्य का कर्तव्य, सतगुरु का आदर करना

चित्र
हमारी रूहानी उन्नति का असल अनुमान इस बात लगता है कि हमारा सतगुरु के साथ कैसे संबंध है। हममें से बहुत से लोग प्रेम को शरीर के स्तर पर नीचे खींच लाये हैं और इसके परिणाम स्वरूप हमने यह सोचना शुरू कर दिया है कि दिव्य-प्रेम के अनुभव के लिए हमारा सतगुरु के साथ देह-स्वरूप के पास रहना बहुत जरूरी है। हम यह भी सोचना शुरू कर देते हैं कि हमारे लिए जिंदगी की हर काम में सतगुररु से दिशा-निर्देश या अगवाई प्राप्त करना जरूरी है। इस प्रकार के विचार सतगुरु के वास्तविक कर्तव्य के बारे में गलतफहमी से उत्पन्न होते हैं। सतगुरु का काम हमारी जिंदगी की समस्याएं हल करना नहीं है। यह काम हमें स्वयं करना है। महाराज चरन सिंह शिष्य को संतमत समझाकर, उसे इस मार्ग पर लगाकर और उसके अंदर शब्द या नाम के प्रति प्रेम पैदा करके देह-स्वरूप का गुरु का कार्य पूरा हो जाता है। इसके बाद देह-स्वरूप के प्रेम को शब्द या नाम के प्रेम में बदलना जरूरी है, क्योंकि हमें दुनिया और शरीर से खींचकर परमात्मा के साथ मिलने का काम शब्द या नाम ही करता है। विचार करने योग्य : -  बाबाजी ने जब संसार के बारे में बताया तो.. सभी...

बाबाजी ने जब संसार के बारे में बताया तो..

चित्र
बाबाजी हमेशा सत्संग में समझाते हैं कि इस दुनिया में हम कभी सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकते। यह जो थोड़े बहुत सुख नजर आ रहे हैं, समय पाकर दुखों में बदल जाते हैं।  महात्मा हमें अपने अनुभव से समझाते हैं कि जब तक हमारी आत्मा परमात्मा से नहीं मिल जाती, जब तक हम कभी सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकते। संसार की धन-दौलत और शक्लों से हम कभी सुख और शांति प्राप्त नहीं कर सकते। जब तक हमारा ख्याल मालिक की भक्ति की ओर नही जायेगा जब तक हम दुखों का सामना करते रहेंगे। महाराज सावन सिंह जिस जगह पर मन और माया का जोर है, वहां शांति कभी रह ही नहीं सकती। देश, जाति और इंसान के झगड़े और दु:ख यहां बने ही रहेंगे। आत्मा को शांति पाने के लिए दूसरे मंडलों की खोज करनी होगी। शांति की खोज करना इंसान का काम है। हर एक इंसान को अपने अंदर खोजना होगा। विचार करें :- गुरमुख और मनमुख में अंतर, बाबा जी ने समझाया शांति की प्राप्ति के लिए सही मार्ग की खोज करना, अपने आत्मिक अस्तित्व में विश्वास प्रकट करना है। हर प्रकार का बाहरी संघर्ष और बाहरी अशांति वास्तव में आंतरिक संघर्ष और आंतरिक अशांति का ह...

गुरमुख और मनमुख में अंतर, बाबा जी ने समझाया

चित्र
संत हमेसा सत्संग पर जोर देते हैं, क्योंकि सत्संग में जाने से यह हमें पता चलता है कि मनमुख और गुरमुख में क्या फर्क है।  गुरमुख केवल गुरू की बातों पर अमल करते हैं। और मनमुख लोग केवल मन के कहे में चलते हैं। मनमुख दुनिया की इच्छाओं में फंसे रहते  हैं। हमें केवल गुरु के हुकुम में चलना है। मनमुख लोगों की सोच :- मन मुख लोग हमेशा भूखे रहते हैं। परमात्मा उन्हें जो चाहे चीजें बख्श दें, कितनी ही नेक संतान हो, धन-दौलत हो, दुनिया में मान इज्जत और पढ़ाई हो, सेहत हो लेकिन वे फिर भी कभी परमात्मा से परमात्मा को नहीं मांगते। वह हमेशा परमात्मा से अपनी दुनिया की इच्छाएं और तृष्णाऐं पूरी करवाना चाहते हैं। वे लोग हमेशा दुनिया के पदार्थों और शक्लों की और ही भागते हैं। गुरु अमरदास जी समझाते हैं कि ऐसे लोगों की कभी भूले-भटके भी संगति नहीं करनी चाहिए। बल्कि उनसे लाखों कोस दूर रहना चाहिए। फिर किस की संगति करनी चाहिए? आप जी उपदेश देते हैं। हे परमात्मा! संतों-महात्माओं की संगति ओर सोहबत दे, ताकि तेरा पता चले, तेरी तरफ हमारा ख्याल जाये। बाबाजी इन बातों को भी पढें :- ये सबसे अच्छा आसन...

ये सबसे अच्छा आसन है, भजन सुमिरन के लिए। पढें

चित्र
अभ्यास करते समय सुखद आसन में बैठकर रीढ़ की हड्डी और गर्दन को सीधा रखना जरूरी है। ठोड़ी अगर थोड़ी सी अंदर की ओर हो तो बेहतर है। सिर न अधिक नीचे की ओर झुका होना चाहिए और न बाहर की ओर, क्योंकि इन दोनों अवस्थाओं में नींद आने का डर होता है। बिल्कुल सही अवस्था में बैठना चाहिए। शरीर में कोई तनाव नहीं होना चाहिए और पूर्णतया आरामदायक आसन में बैठना चाहिए, ताकि भजन सुमिरन में ध्यान लगे। बाबा जी फरमाते हैं :- अभ्यास में शरीर और मन दोनों शामिल होते हैं। अगर अभ्यास में सहायक सुखद आसन नहीं अपनाएंगे तो अभ्यास में बाधा पड़ेगी। इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि सीधे और सावधान होकर बैठे और शरीर पूरी तरह अडोल रहे। इससे ने केवल अभ्यास में सहायता मिलती है, बल्कि इसका स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। क्या अपने यह पढ़ा :- अगर इसको नही पढ़ा तो सब अधूरा ही समझो जिस प्रकार हिल रहे गिलास में पड़ा पानी स्थिर नहीं रह सकता, उसी प्रकार अगर शरीर बार-बार हिलता रहे तो मन भी शांत और स्थिर नहीं हो सकता। शरीर को अडोल रखने से मन को स्थिर रखने में सहायता मिलती है। इसलिए अभ्यास के लिए ऐसा आसन अपनान...

अगर इसको नही पढ़ा तो सब अधूरा ही समझो

चित्र
संत महात्मा हमेशा समझाते आए हैं सिमरन और ध्यान कि हमें कुदरती आदत पड़ी हुई है। इसलिए इस कुदरती आदत से फायदा उठाओ। दुनिया के सिमरन और ध्यान के स्थान पर मालिक के नाम का सिमरन और ध्यान करो। क्योंकि सिमरन को सिमरन काटेगा और ध्यान को ध्यान काटेगा। पानी की मारी हुई खेती पानी से ही हरी भरी होती है।  दुनिया की नाशवान चीजों का सिमरन करके हम उनसे मोहब्बत किये बैठे हैं। उनमें से कोई भी चीज जो हमारा साथ देने वाली नहीं है। उनका मोह या प्यार हमें बार-बार देह के बंधनों की ओर ले आता है। हमें चाहिए कि उस मालिक के नाम का सिमरन और ध्यान करें जो कभी फ़ना नहीं होता, जिसकी हमारी आत्मा अंश है और जिसके अंदर वह समाना चाहती है। बाबा जी की इस बात को भी पढें :- बाबा जी की इन बातों पर करें अमल, हो जाएगा उद्धार। बाबा जी समझाते हैं :- यह हमारा मन जो विषयों-विकारों में, दुनिया के मोह या प्यार में फंसकर हिरण की तरह भटकता फिरता है। जब यह राम नाम या शब्द के साथ जुड़ जाता है तो हमेशा के लिए बिंध जाता है। इसके अलावा और कोई विचार करना या इस मन को वश में करने का कोई और उपाय करना व्यर्थ है। सिर्फ सच्...

बाबा जी की इन बातों पर करें अमल, हो जाएगा उद्धार।

चित्र
हम दुनिया के जीव् हमेशा, दिन-रात पेट के धंधों की खातिर भटकते रहते हैं और उस लक्ष्य के बारे में कभी नहीं सोचते, जिसके लिए मालिक ने हमें यहां भेजा है। हमारी अपने घर में आग लगी हुई है और हमें लोगों की आग बुझाने की फिक्र लगी हुई है। अपना घर लूटा जा रहा है, हम दूसरों के घरों की चौकीदारी कर रहे हैं। हम अपना बोझ उठा नहीं सकते, पराये गधे बने बैठे हैं। अपने आप को भी धोखा दे रहे हैं और दुनिया को भी धोखा दे रहे हैं। हम कितने मनमुख, मुगध और गंवार हैं कि अपने मरण-जन्म को भी भूले बैठे हैं । कबीर साहिब फरमाते हैं :- राम पदारथु पाई कै कबीरा गांठि न खोल्ह।। नही पटणु नही पारखु नही गाहकु नही मोलु।। कबीर जी फरमाते हैं उस नाम रूपी दौलत को प्राप्त करके उसे अपने अंदर इतना दबाकर रखो कि उसकी खुशबू तक बाहर न जाये, क्योंकि न तो दुनिया में कोई उसका अधिकारी है, न किसी को खोटे और खरे की पहचान है और न ही उसका कोई ग्राहक है और न ही उसकी कोई कीमत देने को तैयार है। लोग तो बेटे-बेटियों के ग्राहक हैं। धन-दौलत के अभिलाषी हैं। वे उस नाम रूपी दौलत की कीमत देने को तैयार नहीं। उसकी कीमत क्या देनी पड़ती ...

इस सत्संग में बाबा जी ने क्या बताया? कि संगत चौक गई, पढ़ें

चित्र
परमात्मा एक है। और जितनी भी जीव इस धरती पर है, ब्रह्मांड में है। सब उस परमात्मा ने ही बनाया है। कण-कण में परमात्मा विराजमान है। बस हमारे सोचने का, देखने का नजरिया अलग है। परमात्मा हर एक जीव के अंदर है। संत समझाते हैं कि जितना हम दूसरे के साथ प्रेम, प्यार बना कर रखेंगे। परमात्मा उतना ही हमारे नजदीक होंगे। फरमाते है :- हे परमात्मा! सब दुनिया के जीव तूने आप पैदा किए हैं। बुरे भी तूने पैदा किए हैं और अच्छे भी तूने ही बनाए हैं और तू खुद ही दोनों को परखने बैठ गया है कि कौन अच्छा है कौन बुरा। जिनको तो खुद अपनी परख के काबिल बना लेता है, उनको तो अपने खजाने में दाखिल कर लेता है। बाकी सब भ्रमों में फंसकर यही यही भूले हुए हैं। बाबा जी ने कहा :- मन को ऐसे करो काबू में।पढ़ना ना भूलें। परमात्मा की दया मेहर :- अब सवाल पैदा हुआ कि परमात्मा दया मेहर किस प्रकार करता है? परमात्मा जब भी दया मेहर करता है। संतों महात्माओं के जरिए ही करता है। बल्कि खुद इंसान के जामें में बैठकर हमारे अंदर अपने मिलने का शौक और प्यार पैदा करता है। हमसे अपनी भक्ति करवाकर अपने साथ मिला लेता है। यही एक जरिय...

इसको पढ़ोगे तो पार हो जाओगे

चित्र
संत हमेशा रूहानियत की बात करते हैं। जब भी बाबाजी सत्संग फरमाते हैं तो वह हमेशा इंद्रियों के भोगों से दूर रहने के लिए कहते रहते हैं। हमेशा समझाते हैं कि भाई जो भी कुछ हम अपनी आंखों से देख रहे हैं। वह सब नाशवान है। उसको नाश हो जाना है। रूहानियत में केवल नम्रता और प्रेम भाव की आवश्यकता है। और यह प्रेम भाव ही हमारे भजन सुमिरन में मदद करता है। बाबा जी समझाते हैं :- बड़ी मुश्किल से हमें यह मनुष्य का जामा मिला है। लेकिन यहां इस जामे में आकर मन के अधीन होकर हम इंद्रियों के भागों में फंसे बैठे हैं। जितना भी हमारा दुनिया से ताल्लुक या संबंध है। सब हमारे शरीर के जरिए ही है। जब तक हम शरीर में बैठे हैं। हमें यह यार, दोस्त, रिश्तेदार, भाई-बहन और दुनिया की धन-दौलत, कौम, मुल्क वगैरह सब अपने ही नजर आते हैं। और हम इन्हें अपना बनाने की कोशिश करते हैं। लेकिन जब हमारी आत्मा इस मनुष्य शरीर को छोड़कर चली जाती है। जब इस दुनिया के सारे ढकोसले यही रह जाते हैं। इसलिए समझाते हैं कि भाई भजन सुमिरन करो। परमात्मा का ध्यान करो। इनको भी पढ़े विकारों को उलटाना ताकि भजन-सुमिरन बने कोई भी रिश्तेदार मौत...

मन को ऐसे करो काबू में।पढ़ना ना भूलें।

चित्र
संत हमेशा समझाते आए हैं कि इस दुनिया में कोई किसी का नहीं है। जितने भी हमारे यार, दोस्त, रिश्तेदार, सगे-संबंधी है। सभी केवल स्वार्थ के साथ जुड़े होते हैं। जब तक उनका स्वार्थ है। वह हमारे साथ हैं। जिस दिन उनका स्वार्थ पूरा हो जाएगा, वे कभी भी आपको नहीं पूछने आएंगे कि आप कैसे हैं? आप का काम कैसे चल रहा है? आपको कोई परेशानी तो नहीं है? एक कहानी है कि किसी का अपनी पत्नी के साथ बहुत प्रेम था। जब पत्नी की मृत्यु हो गयी तो उसने अपनी पत्नी को एक संदेश भेजना चाहा। उसने एक कमाई वाले अभ्यासी को अंतर में अपनी पत्नी को संदेश देने के लिए कहा। अभ्यासी पहले ध्यान अंदर ले गया और फिर बाहर ले आया। उसने अभ्यासी से पूछा की मेरी पत्नी क्या कहती है? अभ्यासी ने जवाब दिया, "वह पूछती है, कौन-सा पति? जब से मैं इस रचना में उतरी हूँ, मेरे इस नाम के अनेक पति हो चुके हैं। आप कौन से पति की बात कर रहे हैं?" यह है हमारे मोह की सीमा। हम सोचते हैं कि रिश्ते इतने असली और जरूरी है, हमारी इनकी प्रति बहुत जिम्मेदारी है पर रूहानी दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि इस सारी सोच को पूरी तरह से पलटने की जरू...

विकारों को उलटाना ताकि भजन-सुमिरन बने

चित्र
निर्मल सोच भजन सुमिरन में विघ्न डालने वाले भावों और विचारों को नई दिशा देने में सहायता करती है। पर हैरानी की बात है कि मन इतना अडियल है कि रूहानी अभ्यास के बारे में सोचते ही यह सभी कुछ आगे की बजाय पीछे कर देता है। हम काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार की बजाय मन में इनके विरोधी गुण पैदा करने की बात करते हैं। ताकि हमें भजन सुमिरन और रूहानी उन्नति में सहायता मिले। क्या हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं। आमतौर पर होता है कि मन बीच में आ जाता है और सब कुछ उलट-पुलट कर देता है। उदाहरण के तौर पर काम, इंद्रियों को भोगों की ओर खींचता है। इसका विरोधी गुण, शील या संयम है। पर क्या अपने आप को रूहानी मार्ग का यात्री कहने के बावजूद, हम शील या संयम धारण करते हैं? क्या यह एक आश्चर्य नहीं है कि हम संयम का केवल भजन सुमिरन के अभ्यास में ही प्रयोग करते हैं? हम यहां तक कह जाते हैं कि अधिक भजन सुमिरन खतरनाक या हानिकारक होता है। इसके विपरीत हम काम-वासना में बह जाने की अपनी कमजोरी के पक्ष में दलीलें देते हैं। हम यहां तक कह देते हैं कि मैंने तो अनुभव प्राप्त करने के लिए भोग, भोगा होगा था। हम दलित देते है...

परमात्मा की कृपा सदा बनी रहे, आजमाएं यह विधि!

चित्र
परमात्मा की कृपा हम सब पर सदा बनी रहती है। परमात्मा कभी भी हमसे दूर नहीं होते। परमात्मा तो हमारे अंदर बसे हुए हैं। परमात्मा का वास हमारे अंदर है। संत महात्मा हर सत्संग में यही बात फरमाते आते रहते हैं, कि परमात्मा को कहीं बाहर नहीं खोजना, परमात्मा तो खुद हमारे अंदर विराजमान है। नम्रता और दीनता जब हमारे अंदर नम्रता और दीनता आएगी तो हमारा ध्यान मालिक की भक्ति और प्यार की ओर जाएगा। यह केवल संतों की संगति के द्वारा ही संभव हो सकता है और ऐसे संतों की संगति मालिक की बख्शीश और कृपा से ही मिलती है। सच तो यह है कि मालिक बक्शीश करें, तभी हमारा ख्याल उसकी भक्ति और प्यार की ओर जाता है। इन पर भी विचार करे :-  मुक्ति के लिए भजन सुमिरन ही दवाई। पढ़ें यानी उस मालिक को मंजूर होगा तभी हम उसकी भक्ति कर सकेंगे। हम दुनिया के जीव अंधे हैं, कुल मालिक आंखों वाला है। अंधे की ताकत नहीं कि वह आंखों वाले को पकड़ सके, जब तक आंखों वाला अंधे को आवाज देकर, उसे अपने पास नहीं बुलाता या अपनी अंगुली पकड़ कर उसे अपने साथ नहीं ले चलता। हम दुनिया के जीव इस माया के जाल में फस कर मालिक को भूलकर अंधे और बहरे ...

मुक्ति के लिए भजन सुमिरन ही दवाई। पढ़ें

चित्र
सूरमा वही है, मन और इंद्रियां जिसके वश में है। क्योंकि अंदर तरक्की उसी मात्रा में होगी जिस मात्रा में यह दोनों वश में होंगे। सुमिरन बाहर भटकते मन को अंतर में लाता है और शब्द से ऊपर की ओर खींचता है। हमारे अंदर अखूट भंडार है। वह परमात्मा खुद भी हमारे अंदर है। जो अंदर जाता है, वही इसका अनुभव करता है; और लोगों को तो इसका अनुमान तक नहीं है।   -------- महाराज सावन सिंह ------- सोच विचार में पड़े से हम अपना ध्यान तीसरे तिल पर एकाग्र नहीं कर पाते और शब्द से जुड़ नहीं पाते। इस रोग से हमारे अहं का पोषण होता है और वह और अधिक मजबूत होता जाता है। अहंकार या होमैं हमारी आत्मा को कैंसर के रूप के समान ढक लिया है और यह हमारे जीवन के हर पहलू को नष्ट कर रहा है। हम आत्मिक तौर पर बीमार हैं और भजन सुमिरन ही एकमात्र दवा है। जो हमें निरोग कर सकेगी। अगर हम दवा का प्रयोग ना करें तो हमारा स्वास्थ्य कैसे सुधर सकता है? हम संत मार्ग के बारे में बातें करते हैं, पुस्तके पढ़ते हैं और चर्चा करते हैं। इस विषय में बहुत कुछ कहा जा चुका है, बहुत कुछ लिखा जा चुका है। चाहे तो हम शेष सारा जीवन बातें कर सकत...

मन को शांत रखें, भजन सुमिरन विधि के लिए पढ़ें

चित्र
संतमत में अक्सर समझा जाता है कि जब तक मन एकाग्र नहीं होगा। आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। जब तक मन शांत होकर नहीं टिकता। आप भजन सुमिरन नहीं कर सकते। क्योंकि जब भी आप भजन सुमिरन करने बैठते हैं तो मन अपना खेल दिखाना शुरू कर देता है। मन आंखों के सामने अजीब-अजीब तस्वीर खड़ी करता रहता है। इसलिए संत महात्मा समझाते हैं कि भजन सुमिरन के लिए एकाग्रता बहुत जरूरी है। हर समय, हर हालात में और हर स्थान पर प्रार्थना करना संभव है। अक्सर बार-बार बोल कर की गयी विनतियों से ऊपर उठकर मन द्वारा और मन से भी ऊपर उठकर हृदय द्वारा विनती करना संभव है। ऐसी प्रार्थना से हमारे अंदर एकदम परमेश्वर के दरबार के पट खुल जाते हैं। बाबाजी समझाते हैं कि जब हम अभ्यास में बैठते हैं। तो हमें एकदम निश्चिंत होना चाहिए। सुमिरन करते समय केवल सुमिरन करना चाहिए और बाकी सब कुछ भूल कर अपने आप को खुले छोड़ देना चाहिए। इसलिए अभ्यास में सबसे पहले ध्यान तीसरे तिल पर रखकर सुमिरन करना चाहिए। हमें मन को अन्य हर प्रकार के विचारों में से निकालना है। और ध्यानपूर्वक सुमिरन में लगाना है। शुरू-शुरू में मन को सुमिरन में रखना अड़िय...

असलियत जानने बिना मुक्ति नहीं, यहां पर मुक्ति संभव

चित्र
सबसे पहले तुम प्रभु की राज्य में पहुंचने का प्रयास  करो, फिर तुम्हें सबकुछ स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा | हमारा असल, हमारी आत्मा असीमित है| यह हर प्रकार की सीमा-बंधनों से मुक्त है| परंतु हमने अपनी तवज्जुह उस असीमित सम्पूर्ण प्रकृति से हटाकर, अपने व्यक्तित्व की सीमित, सापेक्ष, साधारण परिस्थितियों की ओर मोड़ ली है| जब तक हमारा ध्यान अपने यथार्थ यानी असलियत की ओर से हटा रहेगा, हम द्वैत में फँसे रहेंगे और उस परम आनंद से जो कि हमारी पहुंच में है, सदा अनजान रहेंगे| उससे दूर रहेंगे| संसार और इसकी वस्तुओं के मायाजाल में उलझ कर हम अपना जीवन बर्बाद कर देते हैं| बार-बार हम इस भौतिक जगत की माया और भ्रम का शिकार होते रहते हैं| विचार करने योग्य :- संतों का कहना, परमात्मा एक है सूफी संत मौलाना रूम कहते हैं     हमारी अवस्था उस सेवक के जैसी है जो अपनी राजा के हुक्म से किसी के लिए किसी दूसरे मुल्क में जाता है| वह सेवक उस मुल्क में जाकर कई अद्भुत और आश्चर्यजनक कार्य करता है और फिर अपने राजा के पास लौट आता है| राज दरबार में राजा उससे पूछता है   ...

संतों का कहना, परमात्मा एक है

चित्र
दुनिया में जितने भी संत महात्मा हुए हैं| सभी संत महात्माओं का ही मानना है कि वह कुल मालिक, परमात्मा, ईश्वर एक है| पूरी दुनिया में उसी का वास है| जितने भी संत महात्मा हुए हैं| उन्होंने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया है की परमात्मा एक है| परमात्मा जर्रे-जर्रे,  पत्ते+पत्ते में समाया हुआ है| सब महात्माओं का यही अनुभव है कि जिस परमात्मा से हम अब मिलना चाहते हैं, वह एक है| यह नहीं कि हिंदुओं का कोई और या सिखों और ईसाईयों का कोई और है| विचार करने योग्य :- सुख और शांति की तलाश, यहाँ हो सकती है खत्म। शेख साअदी कहते हैं बनी आदम आअज़ाए यक दिगर अन्द, कीह् दर आफ्ररीनश ज़ि यक जौहर अन्द| सभी इंसान एक ही जिस्म के जुदा-जुदा अंगों की तरह है क्योंकि सभी एक ही स्त्रोत से निकले हैं| गुरु अर्जुन देव जी फरमाते हैं एकु पिता एकस के हम बारिक....|| सभी इंसान एक ही परमात्मा के बच्चे हैं| और सबका एक ही पिता है, इसलिए सभी भाई-भाई है| सिर्फ इंसानों को ही नहीं, संसार के सभी जीवो को पैदा करने वाला वह परमात्मा एक ही है| मुसलमान फकीर उस परमात्मा को 'रब्बुल-आलमीन' कहकर या...

सुख और शांति की तलाश, यहाँ हो सकती है खत्म।

चित्र
संतों ने हमेशा फ़रमाया है कि सत्संग ही एक ऐसा साधन है जिसके जरिये हम सुख औऱ शांति हासिल कर सकते हैं| हर एक इंसान सुख और शांति की तलाश कर रहा है, और अलग-अलग चीजों में अलग-अलग स्थानों पर जाकर सुख और शांति ढूंढ रहा है| लेकिन असली सुख और असली खुशी सिर्फ शब्द में ही है| जिसके साथ हमारा ख्याल सिर्फ सतगुरु की जरिए ही जुड़ सकता है| शब्द हमारे अंदर वह शब्द बेशक हमारे अंदर है| लेकिन अगर हमें किसी संत महात्मा की संगति नहीं मिली तो हम उस ऊंची सच्ची और पवित्र धुन को कभी नहीं पकड़ सकते| इसलिए हमें चाहिए कि पूरे गुरु की तलाश करें| जो हमारे ख्याल को उस शब्द से जोड़कर हमें मालिक से मिला दे| इसके अलावा और कोई चीज हमें असली और सच्ची खुशी नहीं दे सकती| गुरु अमरदास जी फरमाते हैं कि अगर इंसान संसार में अनेक प्रकार के भोग भोग रहा है| नौ खंड पृथ्वी का राज भी कर रहा है तो भी उसे बिना सतगुरु की सच्चा सुख नहीं मिल सकेगा और वह बार-बार जन्म लेता और मरता रहेगा| इनपर भी विचार करे :- इस जरिए परमात्मा को हम पा सकते हैं, विधि जानने के लिए पढें! संतो महात्माओं में हमारे अंदर बोलकर कुछ ...

इस जरिए परमात्मा को हम पा सकते हैं, विधि जानने के लिए पढें

चित्र
संत महात्मा बताते हैं कि यह मनुष्य चोला बड़ी मुश्किल से मिलता है| और एक यह एक ही साधन है| जिसके जरिए हम आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं| मनुष्य जन्म ही यह ऐसा है जिसमें हम बैठकर भजन सुमिरन करके चौरासी लाख जून की जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकते हैं| लेकिन यहां इस जामे में आकर मंकी अधीन होकर हम इंद्रियों के भोग में फंसे बैठे हैं| और हम इतना इन इंद्रियों के भोगों में लिप्त हो गए हैं कि सब कुछ भूल बैठे हैं| यहां तक कि परमात्मा को भी भूल बैठे हैं| संत महात्मा समझाते हैं जितना भी हमारा दुनिया से ताल्लुक या संबंध है| सब हमारे शरीर के जरिए ही है| जब तक हम शरीर में बैठे हैं| हमें ये यार-दोस्त, रिश्तेदार, भाई-बहन और दुनिया की धन-दौलत, मुल्क वगैरह सब अपने ही नजर आते हैं| या कम से कम हम इन्हें अपना बनाने की कोशिश करते हैं| जिस समय शरीर से हमारा साथ छूट जाता है| इन सब चीजों से भी संबंध टूट जाता है| हमें चाहिए कि जब तक परमात्मा ने इस शरीर में बैठने का मौका दिया है| इससे काम लें| इसमें बैठकर न तो इसे इतना दुख देना है कि मालिक की भक्ति ही ना हो सके और ना ही इसे इतना सुख और आ...

एक बार इसको पढ़ोगे तो आंखें खुल जायेंगी

चित्र
इस दुनिया में जितने भी भी संत महात्मा आए हैं| उन सभी का यही कहना है कि की परमात्मा का ध्यान करो| भजन सुमिरन करो| वहां पर केवल आपकी भक्ति की कद्र की जाएगी, ना कि आपकी जाति और धर्म पूछा जाएगा| परमात्मा के दरबार में केवल भक्ति भाव ही देखा जायेगा| परमात्मा की कोई जाति या धर्म नहीं होता उस मालिक की कोई कौम नहीं है, उसका कोई मजहब या मुल्क नहीं है| न ही उस मालिक की कोई जाति या रंग-रूप है| अगर हम महात्माओं की वाणीयों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें तो पता चलेगा कि वे हमारे ख्याल को जाती-पाती, कौम, मजहब और मुल्क के भेद-भाव से ऊंचा उठाकर हमारे अंदर परमात्मा की भक्ति का शौक और प्यार पैदा करते हैं| वह हमें परमात्मा की भक्ति करना सिखाते हैं| हमारे अंदर परमात्मा के प्रति प्रेम भरते हैं। इन पर भी अमल करें:- पूर्ण सतगुरु कौन? पहचान कैसे हो? जिस परमात्मा ने अपने हुकुम के द्वारा इस सृष्टि की रचना की है, अगर उसका कोई रंग-रूप और जाति नहीं है तो हमारी आत्मा की ---जो उस परमात्मा की अंश है, उस परमात्मा से ही निकली है और वापस जाकर उसमें ही समाना चाहती है--- कैसी कोई जाति हो सकती है? जब समुंद्र ...

पूर्ण सतगुरु कौन? पहचान कैसे हो?

चित्र
संसार में बहुत संत महात्मा आए हैं और आते रहेंगे लेकिन इन सब में सच्चा और पूर्ण गुरु बनने योग्य कौन हैं? और इनकी कैसे पहचान हो? यह जानना बहुत जरूरी है| पूरा गुरु वही है जो हमें पांच शब्दों का  भेद देता है और इन पांच शब्दों के द्वारा हमें अपने सच्चे घर ले जाता है| स्वामी जी महाराज भी अपनी वाणी में यही फरमाते हैं| कि शब्द-स्वरूपी, शब्द -अभ्यासी गुरु की ही तलाश करनी चाहिए| विचार करने योग्य :- सच्ची भक्ति और पूजा यानी भजन सुमिरन हज़रत ईसा भी यही फरमाते हैं कि अगर महात्मा पूरा नहीं होगा तो वह खुद भी अपने शिष्यों के साथ डूब जाएगा| फरमाया है, 'अगर अंधा अंधे का मार्गदर्शन करेगा, तो दोनों गड्ढे में गिरेंगे|' पूरे और सच्चे गुरु की यही पहचान है कि वह हमारी आत्मा को अनहद शब्द के साथ जोड़ देते हैं| जिसे ऐसा गुरु मिल जाता है| वह अपने अंदर उस शब्द की ऊंची और मीठी आवाज को सुनना शुरू कर देता है| जो शुरू-शुरू में घंटे की आवाज के समान होती है| वह अनहद शब्द ही आनंद और कभी बंद न होने वाला ऊंचा और सबसे सच्चा संगीत है| वह शब्द ही हमेशा हमारे अंदर गूँजने वाली ईश्वरीय आवाज़...

बिना इच्छाएं खत्म किए परमात्मा को पाना नामुमकिन है

चित्र
संत महात्मा अपने हर एक सत्संग में सांसारिक की इच्छाएं खत्म करने पर काफी जोर देते हैं| संत महात्मा समझाते हैं की जितनी हमारी इच्छाएं कम होंगी| उतना हम परमात्मा के नजदीक होंगे| तुलसी साहिब उपदेश देते हैं :- दिल का हुजरा साफ़ कर, जानां के आने के लिये| ध्यान गैरों का उठा उसके बिठाने के लिये|| कुछ जानने योग्य :- सच्ची भक्ति और पूजा यानी भजन सुमिरन दिल तो हमारा दुनिया के पदार्थों और शक्लों के लिए भटकता है, और मिलना हम मालिक से जाते हैं, ये दोनों बातें कैसे हो सकती हैं? मन तो एक ही है, उसे चाहे दुनिया के प्यार में लगा लें, चाहे मालिक की भक्ति में| हमारा कोई रिश्तेदार या प्यारा हमसे कहीं दूर चला जाता है, हम से बिछड़ जाता है, तो हम उसकी याद में किस तरह तड़पते हैं, सारी रात जागकर आंसू बहाते रहते हैं| क्या हमने कभी मालिक के बिछोड़े में एक रात भी जाकर काटी है? हमारी आंखों में उस मालिक की याद में एक आंसू भी आया है? हम अपने बच्चे को बाहर खेलने के लिए आया के साथ भेज देते हैं| आया तरह-तरह से उसका मन बहलाने की कोशिश करती है| कभी उसे मीठी-मीठी बातें सुनाती है, कभी मिठाई देती है, कभी खिल...